देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत अन्य नगरों में दस साल से ज्यादा पुराने बीएस-3 स्टैण्डर्ड के डीजल वाहनों की बिक्री पर रोक लगाने के मामले में कार और अन्य ऑटोमोबाइल कंपनियों की तरफ से दायर याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से 31 मार्च के बाद 10 साल पुराने वाहनों पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा की क्या बीएस-3 स्टैण्डर्ड वाहनों को बीएस-4 में बदलना संभव है? जिसके जवाब में ऑटोमोबाइल कंपनियों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह बात टू जी फ़ोन को फोर जी फ़ोन में बदलने जैसी है। जो संभव नहीं है। उन्होंने कोर्ट से यह भी कहा कि नए स्टैण्डर्ड को अपनाने के लिए इस तकनीक पर कंपनियों ने 25 हज़ार करोड़ रूपए खर्च किये हैं। जिससे पहले ही बिक्री और लाभ के अंतर से जूझ रही इंडस्ट्री को और नुकसान पहुँच सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने वाहन निर्माता कंपनियों के वकील की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गौरतलब है कि दिल्ली सहित कई बड़े शहरों में 10 साल से ज्यादा पुराने वाहनों पर रोक लगी है। इसी रोक को बरक़रार रखने के लिए सुनवाई जारी है।
कंपनियों ने पहले से बने वाहनों की स्थिति से सम्बंधित याचिका भी दाख़िल की है। जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष तीन विकल्प हैं। बीएस-3 वाहनों का पंजीकरण पूरी तरह रद्द कर दिया जाए, या फिर उनके पंजीकरण की अनुमति दी जाए लेकिन प्रमुख शहरों में उनको चलाने पर रोक लगा दी जाए। इसके अलावा एक अन्य विकल्प यह है कि स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के मद्देनजर कंपनियों पर शुल्क लगाया जाए और वे सरकार द्वारा ईंधन के उन्नयन पर खर्च हुए भारी राशि की इसके जरिए भरपाई करें। ऐसे में जब की बीएस-4, 1 अप्रैल से लागू होना है कोर्ट से राहत मिलनी लगभग तय है लेकिन यह छूट महानगरों के अलावा अन्य शहरों के लिए होगी। हालांकि इस मामले में ज्यादा जानकारी कोर्ट के फैसले के बाद ही मिल सकेगी।