जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35A के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को अगले 3 माह के लिए टाल दिया है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि बिना संसद में प्रस्ताव पारित किए इस अनुच्छेद को संविधान में कैसे शामिल किया गया? इसे निरस्त करने पर सरकार क्या सोचती है? उस पर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को सूचित किया कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए सभी पक्षकारों से बातचीत के लिए एक प्रतिनिधि नियुक्त किया है और इस मामले में कोई भी आदेश सरकार के प्रयासों को प्रभावित कर सकता है। अटॉर्नी जनरल ने छह माह तक सुनवाई टालने का अनुरोध पीठ से किया, लेकिन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन ‘वी द सिटीजन्स‘ सहित चार याचिकाओं की सुनवाई सिर्फ आठ सप्ताह के लिए टाला।
लेकिन अब केंद्र के इस फैसले पर प्रश्न खड़े होने लगे हैं। माना जा रहा है कि गुजरात-हिमाचल में चुनाव और जम्मू-कश्मीर के लिए वार्ताकार की नियुक्त के चलते सरकार इस मुद्दे को फिलहाल टालना ही बेहतर समझ रही है।
उधर जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को लेकर चल रही बहस के बीच बीजेपी की प्रदेश इकाई ने कहा है कि राज्य को विशेष दर्जा देने वाले धारा 370 को हटाना ही कश्मीर की दशकों पुरानी समस्या का एकमात्र व्यावहारिक समाधान है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र गुप्ता ने कहा कि धारा 370 को हटाना और जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के बराबर लाना ही इस मुद्दे का एकमात्र व्यावहारिक हल है। गुप्ता ने कहा कि यह अलगाववादियों और पाकिस्तान के लिए मुंहतोड़ जवाब होगा जो राज्य में आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर खासकर घाटी के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त होगा।
उधर कश्मीर के अलगाववादी नेताओं का कहना है कि अगर राज्य के हितों के खिलाफ कोई भी फैसला आता है तो वह जनांदोलन करेंगे। तीन अलगाववादी नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक ने लोगों से अनुरोध किया कि यदि सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगों के हितों और आकांक्षा के खिलाफ कोई फैसला देता है तो वे लोग एक जनांदोलन शुरू करें।