APN PODCAST: सुनो भई साधो- संसद में राष्ट्रपति पर रार, लेकिन जनता के मुद्दों पर चर्चा का इंतजार

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लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर राष्ट्रपति के अपमान के आरोप लगाती स्मृति ईरानी को सबने देखा और सुना। कांग्रेस पार्टी पर राष्ट्रपति के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने के आरोप लगाने को लेकर संसद के अंदर हंगामा जारी रहा और हालात ऐसे बने कि आखिरकार संसद को स्थगित करना पड़ा। बाद में कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति से माफी मांग ली गई लेकिन संसद  का वह अनमोल समय जो जनता और जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा  के लिए होता वह फिर वापस नहीं आने वाला। 

sonia gandhi smriti irani

सवाल यह है कि आखिर क्यों सदन सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है……बताएंगे आपको पूरी बात, जुड़े रहिए हमारे साथ….. नमस्कार , मैं मनीष राज , मेरे साथ आप सुन रहे  हैं समससामयिक चर्चाओं का विशेष पॉडकास्ट “सुनो भई साधो” इस खास कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

साधो , सोमवार 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू  हुआ और फिलहाल इसके लगभग 2 हफ्ते पूरे हो चुके हैं। लेकिन संसद में इस बार  अब तक हंगामा ही हंगामा  देखने को मिला है दोनों सदन बार-बार स्थगित होते रहे।  जनता  से जुड़े  तमाम मुद्दों  पर चर्चा टलती रही।  ऐसे में आखिर  किसको जिम्मेदार  माना जाए? इसमें नुकसान आम जनता का होता है। लेकिन जनता के प्रतिनिधि चाहे पक्ष के हों या विपक्ष के  कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि संसद के दोनों सत्र जब चल रहे होते हैं तो प्रति मिनट ढाई लाख का खर्चा होता है। यदि घंटे के हिसाब से देखा जाए तो यह आंकड़ा प्रति घंटे डेढ़ करोड़ से भी ऊपर का जाता है। मतलब यह कि एक दिन  यदि संसद नहीं  चले तो  तो हिसाब लगा  लीजिए कि कितने करोड़ों का नुकसान  प्रतिदिन हो जाता है। 

साधो, एनडीए की  ओर से राष्ट्रपति के लिए जब से द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आया था तब से विपक्ष की टीका टिप्पणी इनकी उम्मीदवारी को लेकर काफी व्यक्तिगत हो गई। राष्ट्रीय जनता दल के  नेता  तेजस्वी यादव ने द्रौपदी मुरमू को  मूर्ति तक कह दिया। उन्होंने तंज कसा कि उन्हें बोलना नहीं आता।  हालांकि, हम सब ने देखा था कि कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री मोदी जब बिहार गए थे तो उनकी उपस्थिति में तेजस्वी यादव खुद लिखा हुआ अपना भाषण भी सही तरीके से पढ़ नहीं पाए थे। दसियों बार उसमें अटके और अशुद्ध उच्चारण किया था। इतना ही नहीं वह यह भी भूल गए कि उनके पिताजी जब एक बार राजनीतिक फंदे में फंसे थे तो अपनी जगह, अपनी  पत्नी राबड़ी देवी को  सत्ता सौंप  गए थे, लेकिन रिमोट अपने हाथ में रखा था। राबड़ी देवी एक रबड़ स्टांप की तरह बिहार की सरकार चला रही थी। लेकिन  साधो राजनीति है राजनीति में सब चलता है …. और भारत की राजनीति की यही विडंबना है  

जब कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए राष्ट्रपत्नि  शब्द का  उपयोग किया तो बात फिर बढ़ गई। हालांकि उन्होंने कहा कि यह मेरे मुंह से गलती से निकल गया लेकिन आप जानते होंगे, कहा गया है की बंदूक से निकली गोली और मुख से निकली वोली वापस नहीं आती। सो इस बात पर हंगामा मचना था। और इसी बात पर संसद में महाभारत छिड़ गया। काफी हंगामा मचने के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को लिखित में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से माफी मांगनी पड़ी।  इसके बाद मामला  तो थमा लेकिन तब तक संसद का काफी बहुमूल्य समय नष्ट हो चुका था।

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जो पुराने और पारंपरिक नेता हैं  और जो संसद की गरिमा और मान्यताओं का ख्याल रखते हैं उनका मानना है लोकतंत्र में आरोप और प्रत्यारोप लगाए जाने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन हर वक्त हर नेता को अपनी गरिमा संसद की गरिमा और राजनीति की शुचिता बनाए रखने की हर संभव कोशिश करनी  ही चाहिए। हमने सुना है भूतपूर्व और देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू और तब के विपक्ष के कद्दावर नेता राम मनोहर लोहिया के तीखे वाद विवाद के बारे में। लेकिन  वो नेता कभी  अपनी गरिमा से नहीं गिरे।  भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी जब विपक्ष में हुआ करते थे तो भी अपनी बोली से  सदन के अंदर  कई लोगों को  निरुत्तर कर देते थे।  लेकिन किसी पर व्यक्तिगत टीका टिप्पणी करने की नौबत कभी नहीं आई।  आज की राजनीति में यह चीज धीरे धीरे  गुम होती नजर आ रही है।

साधो,  इस मानसून सत्र की शुरुआत में शायद इन्हीं सब चीजों से बचने के लिए संसदीय सचिवालय की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था। कि सदन में चर्चा के दौरान कई अनचाहे शब्द है, जिन्हें प्रयोग करना वर्जित होगा और सदन के अंदर सुचारू रूप से चर्चा चल सके इस वजह से धरना प्रदर्शन हड़ताल सब नहीं किया जा सकेगा। लेकिन  विपक्षी नेताओं ने इसे अपनी अभिव्यक्ति का उल्लंघन माना और सारी सीमाएं तोड़ दी… इसका नतीजा सामने आया कांग्रेस और विपक्ष के अन्य नेताओं के निलंबन के रूप में…. इस साल अभी तक सत्र में कुल मिलाकर 27 नेताओं को निलंबित किया जा चुका है. यह काफी गंभीर बात है…. वे सांसद सदन की चर्चा में भाग ले सकते थे…. आम जनता के मुद्दों पर सदन के अंदर चर्चा की मांग कर सकते थे…लेकिन हो न सका।

बहरहाल अभी सत्र का आधा समय बाकी है।  देखने वाली बात यह होगी  कि  संसद के आने दिनों में सरकार कुछ  खास विधेयकों को प्रस्तुत करने जा रही है, तब विपक्ष का क्या रवैया रहेगा? सदन सुचारू रूप से चले इसमें सबका भला है जनता का भी ….जनादेश का भी … और जनप्रतिनिधियों का  भी। 

आज के लिए बस इतना ही। आपने अभी तक चैनल या पेज को सब्सक्राईब नहीं किया है तो जरुर करें। आपको हमारा पॉडकास्ट कैसा लगा ? इस बारे में कमेंट कर सकते हैं। इसे लेकर सुझाव दे सकते हैं । “सुनो भई साधो” में मैं फिर मिलूंगा, एक नए मुद्दे से आपको रुबरु कराने। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए। नमस्कार, आपका दिन शुभ हो।

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