
SCO Summit: उज्बेकिस्तान के जिस शहर समरकंद में Shanghai Cooperation Organisation में शामिल होने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे हैं, उस शहर से भारत का पुराना नाता है। तमाम देशों के बीच बातचीत के लिए कूटनीति की जो टेबल सजी है, वह भारत के लिए बेहद खास है। इस शहर का सियासी और तिजारती मिजाज कोई 50-100 सालों का नहीं है। हजारों वर्षों से दुनिया फतह करने निकले कई सम्राट, लड़ाके और वार लॉर्ड्स अपनी तलवार की धार से इस मुल्क को लहूलुहान करते रहे हैं।
अगले दो दिनों तक वर्ल्ड लीडर्स के बड़े-बड़े नाम जैसे व्लादिमीर पुतिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग, तैय्यप एर्दोगन, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी यहां जुटेंगे और जलवायु, खाद्यान्न संकट, एनर्जी क्राइसिस और यूक्रेन युद्ध के साये में जी रही दुनिया को ‘अच्छे पैगाम’ देने की कोशिश करेंगे। मेहमाननवाजी समरकंद शहर की जिंदगी का हिस्सा है। इस शहर को पूर्वी एशिया का आतिथ्य सत्कार की विशेष उपलब्धि हासिल है। इस शहर का इतिहास ऐसा है कि जिसका भारत से भी पुराना नाता है।

माना जाता है कि ये शहर उतना ही पुराना है जितना कि एथेंस और रोम। यानी की लगभग 3000 साल पुराना। इतिहास के जिस भी बर्बर लुटेरे का जिक्र आप करते हैं उनमें से एक ना एक ने इस शहर को जरूर छल्ली किया होगा। सिकंदर, चंगेज खान, तैमूर लंग, वहीं, बाबर इस शहर पर कब्जे के लिए ताउम्र तड़पता रहा हैं।
जिस बाबर की समरकंद पर कब्जे की हसरत पूरी ना हो सकी उसने थक- हारकर भारत की ओर अपना रुख किया। पाशविक क्रूरता के लिए मशहूर चंगेज खान और तैमूर लंग का जंगी कारवां इस शहर की दीवारों से टकराया। युद्ध और तिजारत के बीच इस शहर में एक मिश्रित संस्कृति पनपती रही और ये शहर दुनिया की संस्कृतियों का समागम बिंदु बन गया।
SCO Summit: समरकंद कैसे पड़ा नाम?
सेंट्रल एशिया में उत्तर-पश्चिम उज्बेकिस्तान में जिराफ नदी के किनारे बसे इस शहर का इतिहास के बारे में जानने से पता चलता है कि यहां मनुष्य ईसा पूर्व 1500 से ही रहता आ रहा है। समरकंद का वजूद तो सालों से रहा है, लेकिन पहले इसका नाम अलग था। समरकंद नाम सोगदियाना से जुड़ा है। इसका अर्थ होता है पत्थरों का किला या पत्थरों से बना शहर। प्राचीन काल में समरकंद सोगदियाना राज्य की राजधानी थी। उस समय समरकंद को Afrosib कहा जाता था। ग्रीक और रोमन इस शहर को मरकंडा के नाम से जानते थे।
उज्बेकिस्तान में जेराफशां की पहाड़ियां सर्दी के मौसम में भारी बर्फबारी, बारिश से जम जाया करती हैं। इन्हीं पहाड़ियों में सफेद फर वाले तेंदुए का निवास है। प्राचीन किवदंतियों के अनुसार, ईसा पूर्व 8वीं सदी में जब समरकंद शहर बसाया जा रहा था तो इन्हीं पहाड़ियों से नीचे आकर एक तेंदुए ने शहर बसाने की इजाजत दी थी। तभी से यहा के लोग तेंदुओं से अपना जुड़ाव रखते हैं।

SCO Summit: 8000 KM लंबे सिल्क रूट के ठीक बीच में है समरकंद
भारत, चीन, पाकिस्तान, फारस के रास्ते पर मौजूद होने के कारण ये शहर सिल्क रूट का हिस्सा था। जिसे रेशम मार्ग कहते हैं। ये रास्ता चीन को रोम और कुस्तुनतुनिया से जोड़ता था। 8000 किलोमीटर लंबे इस सिल्क रूट के ठीक बीच में पड़ता था समरकंद इसलिए व्यापार और राजनीति दोनों में ही ये शहर एशिया और यूरोप के बीच सेतु का काम करता था। इस मार्ग से कपड़ा, रेशम, गेहूं, चावल, घोड़ा, खच्चर, फलों का काफी सौदा किया जाता था। चीन आज जब समरकंद में SCO की इस बैठक में शामिल हो रहा है तो वह इस सिल्क रूट के नॉस्टेलजिया से मुक्त नहीं हो सका है।
SCO Summit: इस्लाम के आगमन से समरकंद पर पड़ा प्रभाव
छठी सदी में इस्लाम के आगमन के साथ ही दुनिया भर में सियासी और सैन्य हलचल होनी शुरू हो गई। इसके प्रभाव से समरकंद भी अछूता न रहा। छठी सदी में समरकंद पर तुर्कों ने राज किया। 712 ईसवी में अरब शासक कुतैबा इब्न मुस्लिम ने समरकंद पर कब्जा कर लिया। इसके बाद समरकंद ग्रेटर खोरासन का हिस्सा बन गया। 9वीं सदी में समरकंद Samanid राज्य का हिस्सा बना था। समय आगे बढ़ता रहा, लेकिन समरकंद की सत्ता किसी के हाथों में ना रही। यहां का राज सबको लुभाता था। 10वीं सदी में ये शहर Karakhanid का हिस्सा बन गया। इस दौरान समरकंद में ऐतिहासिक महत्व की कई इमारतें बनायी गयी, लेकिन तब तक सुदूर पूर्व में मंगोल शासक चंगेज खान दुनिया में खुरेंजी का नया इतिहास लिखने आ चुका था।

SCO Summit: चंगेज खान ने इस शहर पर किए बेइंतहा जुल्म
इस शहर के दर्दनाक इतिहास में सन 1218 में मंगोल साम्राज्य का विस्तार कभी भूला नहीं जा सकता। मंगोल साम्राज्य का विस्तार अमू दरिया, तुरान और ख्वारज्म राज्यों तक हो रहा था। 1219-1221 के बीच चंगेज खान ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। उसने कई बड़ों राज्यों ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात को निर्ममता के रौंद कर रख दिया। जिन राज्यों ने अपने घुटने टेक दिए वो उस समय बच गए। जिन्होंने युद्ध का रास्ता चुना वो मंगोल सेना के हाथों बर्बरता का शिकार हुए। मंगोल खानाबदोश कबीले से थे। वो शहरी जीवन से नफरत करते थे। यही कारण था कि उन्होंने समरकंद जैसे खूबसूरत शहर में तबाही मचा कर रख दी थी। समरकंद में कई ऐसी धरोहरें थी जिन्हें जमींदोज कर दिया गया। हजारों की संख्या में लोगों को मौत के घाट उतारा गया। चंगेज खान की इस बर्बरता का आखिरकार 1227 में अंत हो गया, लेकिन चंगेज खान की मौत के बाद भी समरकंद पर मंगोलों का शासन रहा।
SCO Summit: चंगेज के बाद तैमूर लंग बना बादशाह
भारत में सरेआम कत्लेआम मचाने वाला तैमूर लंग समरकंद के लिए लोकप्रिय राजा साबित हुआ। तैमूर लंग यूरेशियन क्षेत्र का अंतिम खानाबदोश राजा था। 1370 ईसवी में समरकंद पर तैमूर लंग ने शासन किया। उसने समरकंद को अपनी राजधानी बनाया। इस दौरान यहां एक बार फिर से ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण शुरू हुआ। तैमूर ने समरकंद की हिफाजत के लिए 8 किलोमीटर की दीवार बनायी।
1399 ईसवी में तैमूर लंग ने दिल्ली का अभियान खत्म किया तो उसने समरकंद में एक भव्य मस्जिद बनाने की सोची। 1404 तक ये मस्जिद बन गई और इसे नाम दिया गया बीबी खानम मस्जिद। भव्य दरवाजों और मेहराब गुम्बद की वजह से ये मस्जिद इस्लामिक स्थापत्य कला का नायब नमूना बन गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, तैमूर ने इस मस्जिद को बनवाने के लिए 95 हाथियों से ईरान और भारत से पत्थर मंगवाए।
तैमूर के परपोते Ulughbeg ने ही समरकंद के प्रसिद्ध रेगिस्तान में एक चौराहा बनवाया, जहां ज्यादातर नीले रंगों के पत्थरों से निर्मित कलात्मक इमारतें विद्यमान हैं। 1420 ईस्वी में उसने खगोलीय घटनाओं को समझने के लिए एक बेधशाला (Observatory) बनवाई।

SCO Summit: समरकंद पर राज करने की बाबर की अधूरी हसरत
मुगल शासन की नींव रखने वाला बाबर जिसने भारत पर कई सालों तक राज किया। उसे उज्बेकिस्तान के फरगना में एक छोटी सी रियासत मिली थी। बाबर की नसों में तैमूरी और चंगेजी नस्ल का खून था। बाबर ने तीन बार समरकंद पर फतह पाने की कोशिश की, लेकिन तीनों बार उसे मात खानी पड़ी। 1511 ईसवी में ईरान के शासक शाह इस्माईल प्रथम की मदद से बाबर ने एक बार फिर समरकंद फतह करने की मंशा से हमला किया। इस बार थोड़े ही देर के लिए सही किस्मत बाबर के साथ थी और वह जंग जीत गया, लेकिन ये जीत अस्थायी थी। धार्मिक वजहों से समरकंद में बाबर के खिलाफ बगावत हो गई और एक बार समरकंद उसके हाथों से फिसल गया।
बाबर इससे हताश हो गया। उधर, उज्बेक लड़ाके बाबर की तलाश में थे। उस समय बाबर ने सिंधू नदी के पास हिंदुस्तान की कई कहानियां सुनी थी। तैमूर लंग और गौरी-गजनबी तब तक भारत को लूट का वापस जा चुके थे। बाबर ने 1519 में चेनाब नदी की ओर कदम बढ़ाया और भारत में नया इतिहास लिखने आ गया।
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