Savitribai Phule Birth Anniversary: भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाजसुधारक सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्मदिन है। सन 1868 में 2021 की तरह सोच रखने वाली यह महान समाजसेविका और कवियत्री सावित्रीबाई ट्विटर पर टॉप ट्रेंड कर रही हैं। इनका जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। दलित परिवार में जन्म लेने वाली सावित्री का लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना था। सावित्रीबाई की आज 191वीं जयंती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन लड़कियों की शिक्षा और लोगों की सेवा में लगा दिया था। इतिहास के पन्नों में सावित्रीबाई फुले अमर हैं।
Savitribai Phule Birth Anniversary पर इतिहास
सावित्रीबाई फुले की शादी महज 9 साल की उम्र में क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले से हो गई, उस समय ज्योतिबा फुले की उम्र महज 13 साल थी। ज्योतिबा फुले समाजसेवी और क्रांतिकारी थे। उनकी सोच महिलाओं को लेकर काफी ऊपर थी। इसलिए उन्होंने सावित्रीबाई को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। घर में ही सावित्रीबाई को ज्योतिबा फुले पढ़ाने लगे। फिर दोनों पति पत्नी मिलकर समाजसुधारक का काम करने लगे।
ज्योतिबा के पिता सावित्रीबाई की पढ़ाई से इतने नाराज हुए कि दोनों को घर से निकाल दिया था। तब उन्हें फ़ातिमा शेख़ के बड़े भाई उस्मान ने अपने घर में जगह दी थी। फातिमा शेख सावित्रीबाई की पहली छात्र थी और बाद में पढ़कर प्रिंसिपल बनीं। खैर इतिहास में फातिमा गुमनामी की जिंदगी जी रही हैं।
Savitribai Phule Birth Anniversary पर खास
सावित्रीबाई ने अपने जीवन में कुछ लक्ष्य को तय किए, जिनमें विधवा की शादी करवाना, छुआछूत मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। उनका मानना था कि अगर महिलाएं शिक्षित होने लगेंगी और अपनी जिम्मेदारी खुद लेने लगेंगी तो समाज से बुराईंया जल्द ही खत्म होने लगेंगी। इसी कड़ी में उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने का बिड़ा उठाया।
1848 में पुणे के भिड़ेवाड़ी में अपने पित के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के लिए विद्यालय की स्थापना की। पुणे में पहला स्कूल खोलने के बाद फूले दंपति ने 1851 में पुणे के रास्ता पेठ में लड़कियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लड़कियों का तीसरा स्कूल खोला।
लड़कियों को शिक्षित करना सावित्रीबाई के लिए आसान नहीं था। वह घर घर जाकर परिवारवालों को समझाती थीं कि लड़कियों को शिक्षित करना क्यों जरूरी है। कई लोग उन्हें अपमानित कर के भगा देते थे और कई लोग अपनी बच्चियों को उनसे मिलने नहीं देते थे।
Savitribai Phule की कविता
उन्हें बच्चियों को पढ़ाने के लिए रोका जाने लगा। सावित्रीबाई के मनोबल को तोड़ने के लिए, जब वे स्कूल जाती थीं लोग उनपर कीचड़ और गंदगी फेंक देते थे। इसलिए स्कूल जाते समय वह अपने झोले में 2 साड़ियां लेकर जाती थी। स्कूल पहुंचकर सावित्रीबाई अपने झोले में लाई दूसरी साड़ी पहनती और फिर दलित बच्चों को पढ़ाती थीं।
सावित्रीबाई फुले जिन स्वतंत्र विचारों की थी, उसकी झलक उनकी कविताओं में स्पष्ट रूप से मिलती है। वे लड़कियों के घर में काम करने, चौका बर्तन करने की अपेक्षा उनकी पढाई-लिखाई को बेहद जरूरी मानती थी। वह स्त्री अधिकार चेतना सम्पन्न स्त्रीवादी कवयित्री थी।
“चौका बर्तन से बहुत जरूरी है पढ़ाई
क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?”
लोगों के ताने बाने को अनदेखा कर सावित्रीबाई अपने लक्ष्य की तरफ बढती रहीं। लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं को भी पढ़ने का हक है। इस समाज में उनका बराबर का हिस्सा है।
सावित्रीबाई का निधन 10 मार्च 1897 को प्लेग से पीड़ित मरीजों की सेवा करते हुए हुआ था। उन्हें भी प्लेग हो गया था।
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