देश की सर्वोच्च पंचायत में गुरुवार को भी वही पुरानी कहानी दोहराई गई। हंगामे का सिलसिला बेरोक टोक जारी रहा। पूरा देश लाइव टीवी पर माननीयों की हरकत देखता रहा और ये भी देखता रहा कि किस तरह उनके टैक्स के पैसे को सियासी हल्लाबोल में बर्बाद किया जा रहा है। राज्यसभा में लगातार नौंवें दिन शून्यकाल और प्रश्नकाल नहीं हो सका।
आंध्र प्रदेश के मुद्दे पर तेलगू देशम पार्टी और कांग्रेस के बीच तीखी नोकझोंक और हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। वहीं, पूर्व मंत्री वाई एस चौधरी ने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के खिलाफ एक टिप्पणी की, जिसके विरोध में कांग्रेस सदस्यों ने नाराजगी जाहिर की और सदन में हंगामा किया।
जनता बहुत उम्मीदों से अपने नुमाइंदों को संसद और राज्यों के सदन में भेजती है। आशा रहती है कि उनके क्षेत्र के सांसद और विधायक सदन के पटल पर अपने-अपने इलाकों के हित की बात रखेंगे, विकास के लिए फंड की मांग करेंगे और विकास के चुनावी वादों को हकीकत में बदलेंगे लेकिन आज जो तस्वीर सामने आ रही है, वह जनता से विश्वासघात की है। जनप्रतिनिधि लड़ने-झगड़ने में सदन का कीमती वक्त बर्बाद कर रहे हैं और जनता ठगी सी देख रही है।
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जब भी अहम मसलों पर चर्चा की बात होती है,तो विपक्ष हंगामा करके सरकार पर दबाव बनाना चाहता है। वहीं सरकार जिद्दी रवैया दिखाते हुए संसदीय बहस से पल्ला झाड़ जाती है। क्या नोटबंदी, क्या पीएनबी घोटाला, सभी का हस्र सदन में एक सा ही हुआ। हंगामे के शोर में संसदीय बहस बह गई और शायद सभी दल भी यही चाहते हैं कि सच जनता के सामने ना आए।
इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि संसद में व्यवधान होने से विपक्ष का ही नुकसान होता है, संसद की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न करना सही नहीं है। हर सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक का नाटक होता है। सभी दल आमने सामने बैठ कर चाय की चुस्कियों के बीच सदन में शांति से काम करने का वादा करते हैं और फिर वादे से पलट जाते हैं।
संसद की 1 मिनट की कार्यवाही में 2.5 लाख रुपए खर्च होते हैं। इस तरह से महज 1 घंटे की संसद की कार्रवाई पर करीब 1.5 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। ऐसे में संसद की कार्यवाही में रोजाना 9 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। ये पैसा जनता का है, पैसे के अलावा सदन के हंगामे में लोकतंत्र की भी बली चढ़ती है। जनता के पैसों से बंगला, गाड़ी और सभी तरह की सुख सुविधाओं का लुत्फ उठाने वाले जन प्रतितिनिधियों को जिस दिन ये बात चुभेगी। उस दिन से देश के लोकतंत्र का कायाकल्प हो जाएगा।
ब्यूरो रिपोर्ट एपीएन