प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीसरे चरण में जारी मतदान के दौरान कल एक रैली में दिए गए बयान पर बवाल मच गया है। भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने प्रधानमंत्री कल फतेहपुर पहुंचे थे। यहाँ उन्होंने अखिलेश के साथ विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए, अगर रमजान में बिजली आती है तो दीवाली में भी आनी चाहिए। प्रधानमंत्री के इस बयान को विरोधियों ने मुद्दा बना लिया है और अब पलटवार करने में लग गए हैं। दूसरी पार्टी के नेताओं ने चुनाव आयोग जाने का मन भी बना लिया है।
भाजपा के अन्य नेताओं जिनमे गिरिराज सिंह,योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे नेता धर्म और जाति की बात पहले से करते रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है जब खुद प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान सीधे शब्दों में धर्म और जाति से सम्बंधित बात कही है। इस बयान के बाद विपक्ष प्रधानमंत्री और बीजेपी पर धर्म की राजनीती और ध्रुवीकरण करने का आरोप लगा रहा है।
विपक्ष खास कर सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद भड़क उठे हैं। इसका कारण प्रधानमंत्री का इन पर हमलावर होना और मायावती के प्रति नरमी बरतने को भी माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैली में सूबे में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव का भी जिक्र किया और सांप्रदायिक रंग के साथ इसकी मिसाल पेश की थी। उन्होंने कहा कि, “यूपी में भेदभाव सबसे बड़ा संकट है। यह भेदभाव नहीं चल सकता हर किसी को उनका हक़ मिलना चाहिए तभी सबका साथ-सबका विकास होता है।”
गौरतलब है कि जाति और धर्म की चर्चा या किसी नेता द्वारा दिए गए बयान का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले मायावती जहाँ खुल कर मुस्लिम मतदाताओं से बसपा को वोट देने की अपील कर चुकी हैं वही अखिलेश मुस्लिम समाज को अपना वोटर बता चुके हैं। सभी नेताओं और दलों के बयानों के वावजूद खुद को पाक साफ़ बताने की कवायद के बीच मतदाताओं के लिए सबसे बड़ी चिंता धर्म और जाति के नाम पर हो रही राजनीति में विकास के मुद्दों का पीछे छूटना है।