आज से 22 साल पहले अमेरिका के खिलाफ अल-कायदा ने चार आत्मघाती आतंकवादी हमले किए थे। उस दिन, 19 आतंकवादियों ने चार विमानों का अपहरण किया। हमलावरों ने पहले दो विमानों को न्यूयॉर्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स से दुर्घटनाग्रस्त कर दिया। तीसरे विमान को अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन में दुर्घटनाग्रस्त किया जबकि चौथा विमान पेंसिल्वेनिया में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इन हमलों में लगभग 3,000 लोग मारे गए।
1996 से रची जाने लगी थी साजिश
दरअसल इस हमले की साजिश घटना के 5 साल पहले 1996 में खालिद शेख मोहम्मद ने अफगानिस्तान में बिन लादेन के सामने रखी थी। खालिद शेख मोहम्मद ने सोचा था कि हवाई जहाजों को कब्जे में लेकर और उनको न्यूयॉर्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर , पेंटागन, यूनाइटेड स्टेट्स कैपिटल, सीआईए मुख्यालय और एफबीआई मुख्यालय, कैलिफोर्निया और वाशिंगटन राज्य की सबसे ऊंची इमारतों और एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र में दुर्घटनाग्रस्त किया जाए। हालाँकि, उस समय इस साजिश को बिन लादेन ने खारिज कर दिया था।
1998 के अंत या 1999 की शुरुआत में, बिन लादेन ने खालिद शेख मोहम्मद को कंधार बुलाया और उसे आतंकी साजिश के साथ आगे बढ़ने के लिए अपनी मंजूरी दे दी। खालिद शेख मोहम्मद, ओसामा बिन लादेन और मोहम्मद आतेफ मुलाकातें करते रहे। खालिद शेख मोहम्मद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करना चाहते था, जबकि बिन लादेन ने व्हाइट हाउस, यूएस कैपिटल और पेंटागन को चुना था। बिन लादेन ने साजिश के लिए नवाफ़ अल-हज़मी, खालिद अल-मिहधर को चुना। क्योंकि ये सऊदी नागरिक थे और उन्हें अमेरिकी वीजा आसानी से मिल जाता। बिन लादेन ने आंतकियों को चुनने में और पैसे से मदद की।
कहानी हैम्बर्ग सेल की
हैम्बर्ग सेल 1998 में अल-कायदा की मंजूरी मिलने के बाद बनाई गई थी। मोहम्मद अता, मारवान अल-शेही, ज़ियाद जर्राह, रमजी बिन अल-शिभ, सईद बहाजी, ज़कारिया एस्साबार और पंद्रह अन्य लोग इस सेल के सदस्य थे। 1992 में मोहम्मद अता जब जर्मनी आया था तो वह धार्मिक था, लेकिन कट्टर नहीं था। वह हैम्बर्ग के तकनीकी विश्वविद्यालय में शहरी नियोजन की पढ़ाई कर रहा था। जर्मनी में रहते हुए, वह हैम्बर्ग में अल कुद्स मस्जिद जाने लगा। 1995 में मक्का की तीर्थयात्रा करने के बाद, अता पहले से भी अधिक कट्टर होकर जर्मनी लौटा।
रमजी बिन अल-शिभ, जिसे “रमजी उमर” के नाम से भी जाना जाता है, एक यमनी नागरिक था। 1995 में, वह सूडान से राजनीतिक शरणार्थी होने का दावा करते हुए शरण मांगने जर्मनी आया। हालाँकि, उसे शरण नहीं मिली और वह यमन लौट आया। बिन अल-शिभ ने बाद में अपने असली नाम के तहत जर्मन वीजा प्राप्त किया और 1997 में जर्मनी आ गया। वहां, एक मस्जिद में उसकी मुलाकात मोहम्मद अता से हुई। दो साल तक, अता और बिन अल-शिभ जर्मनी में एक साथ रहे।
मारवान अल-शेही समुद्री इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात सेना से छात्रवृत्ति पर 1996 में बॉन, जर्मनी आया था। अल-शेही की मुलाकात 1997 में अता से हुई और 1998 में वह अता और बिन अल-शिभ से जुड़ने के लिए हैम्बर्ग चला गया। ज़ियाद जर्राह अप्रैल 1996 में लेबनान से जर्मनी आया। जहां उसने ग्रिफ़्सवाल्ड के एक जूनियर कॉलेज में दाखिला लिया। 1996 के अंत तक, जर्राह के धार्मिक विचार कट्टरपंथी हो गए। सितंबर 1997 में, वह विमान इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए हैम्बर्ग के तकनीकी विश्वविद्यालय चला गया। हैम्बर्ग सेल के अन्य सदस्यों में सईद बहाजी शामिल था। जो 1995 में जर्मनी आया थे। उसका जन्म वहीं हुआ था, लेकिन नौ साल की उम्र में वह मोरक्को चला गया था। 1996 में, सईद बहाजी ने तकनीकी विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।
आतंकियों में नवाफ़ अल-हज़मी और खालिद अल-मिहधर भी शामिल थे जिन्हें 1999 की शुरुआत में चुना गया था। इसी साल के आखिर में, हैम्बर्ग सेल अफगानिस्तान पहुंचा। मोहम्मद अता को बिन लादेन ने आतंकियों का नेतृत्व करने के लिए चुना था। बिन लादेन ने इन लोगों को इसलिए चुना क्योंकि वे पढ़े लिखे थे, अंग्रेजी बोल सकते थे और उनके पास पश्चिम में रहने का अनुभव था। इन लोगों में देखा जाता कि उनके पास कौन सी खूबी है। अल-कायदा को पता चला कि हानी हंजौर के पास पहले से ही एक पायलट का लाइसेंस था। खालिद शेख ने इन आतंकियों को रेस्तरां में खाना ऑर्डर करने और पश्चिमी कपड़े पहनने का तरीका सिखाकर घुलने-मिलने में मदद की।
अमेरिका में ही ली प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग
हाज़मी और मिहधर जनवरी 2000 के दौरान अमेरिका पहुंचे। वहां उन्होंने कैलिफ़ोर्निया में विमान उड़ाने का प्रशिक्षण लिया। उसी साल हानी हंजौर 8 दिसंबर को कैलिफोर्निया पहुंचा और वहां उसे अल-हज़मी मिला। अता साल 2000 में 3 जून तो जर्राह 27 जून को अमेरिका पहुंचा। हैम्बर्ग सेल के सदस्यों ने फ्लोरिडा में हफमैन एविएशन में पायलट प्रशिक्षण लिया। अता, मारवान अल-शेही और ज़ियाद जर्राह के साथ फ्लोरिडा पहुंचा था। दिसंबर तक, अता और अल-शेही ने हफ़मैन एविएशन छोड़ दिया था और 21 दिसंबर को, अता को पायलट लाइसेंस प्राप्त हुआ । जर्राह ने 15 जनवरी 2001 को हफ़मैन एविएशन छोड़ दिया था।
साल 2001 में बाकी आतंकी अमेरिका पहुंचने लगे। जुलाई 2001 में, अता ने स्पेन में बिन अल-शिभ से मुलाकात की, जहां उन्होंने तय किया आखिर निशाना क्या होगा। ये लोग चाहते थे कि हमले जल्द से जल्द किए जाएं।