PFI: PFI पर प्रतिबंध को लेकर केंद्र ने किया Tribunal का गठन, HC के जज बनाए अध्यक्ष केंद्र सरकार ने UAPA के तहत PFI पर प्रतिबंध को लेकर ट्रिब्यूनल गठित किया।केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा को इस ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष बनाया है। PFI पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगाने के बाद केंद्र ने ट्रिब्यूनल का गठन किया। इस ट्रिब्यूनल में PFI अपने खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दे सकता है। ट्रिब्यूनल PFI के प्रतिबंध की जांच करेगा।इसके साथ ही यह निर्णय भी लेगा कि PFI और उसकी सहयोगी संस्थाओं पर UAPA के तहत प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण है या नहीं।दरअसल किसी संस्था पर प्रतिबंध लगाने के बाद 30 दिन के अंदर केंद्र को एक ट्रिब्यूनल का गठन करना होता है।

PFI: केंद्र ने 28 सितंबर को की थी कार्रवाई
गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस ने प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से कथित तौर पर जुड़े 4 लोगों को कठोर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।केंद्र सरकार ने 28 सितंबर को पीएफआई पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने शहर के 6 जिलों में फैली पीएफआई की इकाइयों पर छापेमारी कर समूह से कथित रूप से जुड़े 33 लोगों को हिरासत में लिया था।
दरअसल, पीएफआई के अलावा उसके सहयोगियों रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) पर भी बैन लगाया गया है।
इन संगठनों को गैरकानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं, ये तय किए जाएंगे। गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पीएफआई और उसके 8 सहयोगियों को 5 साल के लिए बैन कर दिया था।

PFI: जानिए ट्राइब्यूनल की भूमिका
यूएपीए की धारा 4 के मुताबिक सरकार अगर किसी संगठन को प्रतिबंधित करती है तो उसे कई जरूरी बिंदुओं पर काम करना होता है। फैसले की समीक्षा के लिए 30 दिनों के भीतर इस तरह के ट्राइब्यूनल की अधिसूचना जारी करनी होती है। इन ट्राइब्यूनल्स में प्रतिबंधित किए गए संगठन अपने वकील के लिए पक्ष रखते हैं।इस साल मार्च में एक यूएपीए ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में 15 नवंबर 2021 को जारी अधिसूचना को सही ठहराया था। जिसमें जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को बैन किया गया था। ट्राइब्यूनल बैन हटा भी सकता है। वर्ष 2008 में ऐसे ही एक ट्राइब्यूनल ने सिमी पर बैन से जुड़ी अधिसूचना को रद्द कर दिया था। उसके अगले ही दिन आनन-फानन में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी जिसने ट्राइब्यूनल के आदेश पर रोक लगा दी।
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