अमेरिका द्वारा हिज्बुल सरगना सैयद सलाउद्दीन को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने पर एक बार फिर पाकिस्तान आतंकवाद की पैरवी करता दिख रहा है। पाकिस्तान की तरफ से बयान दिया गया है कि वो कश्मीर की आजादी के लिए लड़ने वाले लड़ाकों को अपना नैतिक समर्थन देता रहेगा। इससे साफ है कि कश्मीर मे पल रहे आतंकियों को पाकिस्तान का पूरा समर्थन मिल रहा है। हालांकि पाकिस्तान की इन नापाक हरकतों से कोई भी अनजान नहीं है।

पाकिस्तान की तरफ से आए बयान पर थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा, “पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक के अलावा दूसरे रास्ते भी मौजूद हैं। वहां के फौजी जनरलों को लगता है कि वो भारत के साथ कोई आसान सी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसमें उनका फायदा हो रहा हैं,लेकिन वो गलत हैं। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए फौज और प्रभावी ढंग से निपट सकती है। हम सैनिकों के धड़ को इकठ्ठा करने में यकीन नहीं करते हैं। भारतीय फौज अनुशासित सेना है”।

शांति के बिना बातचीत कैसे संभव

कश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत के मुद्दे पर जनरल बिपिन रावत ने कहा कि, “अगर शांति न हो तो बातचीत कैसे हो सकती है। कश्मीर घाटी में हालात को सामान्य बनाने के लिए सेना अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। मैं उस शख्स से बातचीत करुंगा जो भरोसा दे कि सेना के काफिले को निशाना नहीं बनाया जाएगा। जिस दिन ऐसा होगा वो खुद बातचीत के लिए आगे आएंगे”।

युवाओं को किया जा रहा है भ्रमित

कश्मीरी युवाओं के फिदायीन बनने पर रावत ने कहा, “कश्मीर में सेना आतंकियों का सामना करने के साथ ही युवाओं के दिलों को जीतने की कोशिश भी कर रही है। हकीकत ये है कि कश्मीरी युवाओं को सुनियोजित तरीके से भ्रमित करने की खेल खेला जा रहा है। 12 से 13 साल के लड़के कहते हैं कि वो फिदायीन बनना चाहते हैं। आखिर सवाल ये है कि उनके दिमाग में वो कौन लोग हैं जो जहर भर रहे हैं। हम उन कश्मीरी नौजवान-नेताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे बातचीत की जा सके। कश्मीरी आवाम खासतौर से युवाओं से उनकी अपील है कि हिंसा का रास्ता छोड़कर वे मुख्य धारा में लौटें। सेना का स्पष्ट मत है कि निर्दोष लोग निशाना न बनें। आतंकियों के खिलाफ सभी अभियानों में ये कोशिश रहती है कि कम से कम नुकसान हो”।

आतंक का शिकार होने के वावजूद नही सुधरता पाक

आतंकी सरगना हाफिज सईद के ऊपर करोड़ों के इनाम की घोषणा के बाद भी पाकिस्तान की सरकार और सेना हाफिज की सुरक्षा में लगी हुई है। लश्कर के ठिकानों पर पाकिस्तान ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में पाक की आतंक विरोधी नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगता है। आतंक की पैरवी करता पाकिस्तान भी खुद को इसका शिकार होने से नही बचा पाया है।

बता दें कि 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के करीब स्थित आर्मी स्कूल में तालिबान ने हमला किया था जिसमें 134 बच्चों की जान गयी थी। आतंकवाद को शरण देने वाले पाकिस्तान को समझना होगा कि मासूमों की जान लेने वाले आतंकियों का कोई मज़हब नही होता। आतंक का शिकार होने के वावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नही आता।

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