बुधवार 5 अक्टूबर 2022 को दो साल के बाद ऑस्ट्रिया के वियना स्थित मुख्यालय में आयोजित हुई तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक और सहयोगी देशों (OPEC+) के ऊर्जा (Energy) मंत्रियों की बैठक में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी लाने के लिए कच्चे तेल के उत्पादन में बड़ी कटौती करने का फैसला लिया गया है. इस कदम को कोरोना महामारी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटके रुप में देखा जा रहा है.
अमेरिका के भारी दबाव के बावजूद कच्चे तेल के उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस (OPEC+) ने बुधवार को हुई बैठक में कच्चे तेल के उत्पादन में 20 लाख बैरल प्रतिदिन कटौती करने का फैसला किया है. यह 2020 की बाद की गई सबसे बड़ी कटौती है.
क्यों घटा रहे हैं उत्पादन?
OPEC+ देशों का कहना है कि बीते तीन महीनों में कच्चे तेल का मूल्य 120 डालर प्रति बैरल से घटकर 90 डालर प्रति बैरल पर आ गया है, इसके साथ ही वैश्विक आर्थिक और कच्चे तेल के बाजार परिदृश्य में अनिश्चितता को देखते हुए यह फैसला लिया गया है.

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि उत्पादन में कटौती से तेल के दाम और उससे बनने वाले पेट्रोल-डीजल की कीमत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ओपेक प्लस (OPEC+) के सदस्य देश पहले ही निर्धारित किए गए कोटे को पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
तीन सप्ताह के उच्च स्तर पर तेल
OPEC द्वारा उत्पादन में कटौती के फैसले के बाद कच्चे तेल के दाम तीन सप्ताह के उच्च स्तर पर चले गए हैं. इस समय कच्चे तेल के दाम 93.41 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहे हैं. पिछले एक दिन में ही कच्चे तेल के दाम में 4 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी देखने को मिली है.

भारत और कच्चा तेल
ओपेक देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन को घटाने का फैसला भारत के लिए काफी महत्व रखता है. भारत अपनी जरूरत का 70 फीसदी कच्चा तेल ओपेक देशों से ही आयात करता है. हालांकि भारत द्वारा ओपेक से तेल आयात में लगातार कमी देखी जा रही है.
भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 1 डॉलर की बढ़ोतरी से भारत के चालू खाते घाटे पर करीब 1 अरब डॉलर (8,000 करोड़ रुपये) का प्रभाव पड़ता है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है.
तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया. जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है.
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है.
भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी. इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे.
कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी से भारत की सरकारी तेल कंपनियों पर पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव बनेगा. इससे पहले रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते जब कच्चे तेल के दाम बढ़े थे तो सरकारी तेल कंपनियों ने पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का निर्णय लिया था. लेकिन अब कई महीनों से भारत में तेल के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. घरेलू उत्पादन में लगातार गिरावट के कारण भारत की आयात निर्भरता बढ़ी है.
‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस’ (ओपेक+)
ओपेक एक स्थायी, अंतर-सरकारी (Inter Governmental) संगठन है, जिसकी स्थापना 5 देशों (ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला) द्वारा सितंबर 1960 में बगदाद सम्मेलन में की गई थी. ओपेक का मुख्यालय विएना (आस्ट्रिया) में है.

इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना एवं उपभोक्ता को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक व नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाजारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है.
ओपेक के सदस्य देशों की संख्या 13 है-
ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला, और वेनेजुएला आदि ओपेक के सदस्य हैं.
ओपेक को अर्थशास्त्रियों द्वारा ‘कार्टेल’ कहा गया है.
ओपेक+ के सदस्य देश 2018 तक वैश्विक तेल उत्पादन का अनुमानित 44 प्रतिशत और दुनिया के ‘सिद्ध’ तेल भंडार का 81.5 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं.
ओपेक +
यह ओपेक सदस्यों और विश्व के 10 प्रमुख गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों का गठबंधन है. इसके सदस्य देशों में – अजरबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं.