आज यानि 19 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संबोधन के साथ दो दिवसीय (18-19 नवंबर) आतंकवाद-विरोधी वित्तपोषण पर तीसरा ‘नो मनी फॉर टेरर’ (No Money For Terror- NMFT) मंत्रिस्तरीय सम्मेलन नई दिल्ली में संपन्न हो गया.
इस सम्मेलन के दौरान दुनियाभर के देशों से आए प्रतिनिधियों ने आतंकवाद फाइनेंसिंग में उभरते हुए ट्रेंड्स, उभरती हुई नई वित्तीय तकनीक का दुरूपयोग और टेरर फाइनेंसिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर विचार-विमर्श किया ताकि प्रभावी रूप से ‘नो मनी फॉर टेरर’ का उद्देश्य सफल हो सके.
18 नवंबर को सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दृढ़ता के साथ आतंकवाद से निपटने में किसी भी अस्पष्टता से बचने को लेकर आह्वान किया था. उन्होंने उन देशों के खिलाफ भी चेतावनी दी है जो आतंकवाद को विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं.
नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन (No Money For Terror- NMFT)
“नो मनी फॉर टेरर” (No Money For Terror) कॉन्फ्रेंस को 2018 में फ्रांसीसी सरकार की एक पहल के रूप में शुरू किया गया था, जो विशेष रूप से देशों के बीच आतंकवाद के वित्तपोषण (Financing) को रोकने के लिये सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिये था. इसका दुसरा सम्मेलन वर्ष 2019 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था. वहीं वर्ष 2020 में भारत में प्रस्तावित इस सम्मेलन को कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था.
कितना है इसका महत्व?
इस No Money For Terror सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों और संगठनों को आतंकवाद के वित्तपोषण पर वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय शासन की प्रभावशीलता एवं उभरती हुई चुनौतियों का सामना करने के लिये आवश्यक कदमों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक बड़ा मंच प्रदान किया.
दिल्ली में तीसरा सम्मेलन
दो दिन के लिए भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित किए गए इस तीसरे सम्मेलन में 72 देशों और 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सम्मेलन के दौरान चार सत्रों में विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया था.
क्या थे चर्चा के मुख्य बिंदु?
आतंकवाद और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण में वैश्विक रुझान. आतंकवाद के लिये धन के औपचारिक और अनौपचारिक माध्यमों का उपयोग. उभरती प्रौद्योगिकियां (New technologies) और आतंकवादी वित्तपोषण. आतंकवादी वित्तपोषण का सामना करने में चुनौतियों का समाधान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग.
सम्मेलन में भारत की चिंताएं?
2021 में अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन ओर तालिबान की वापसी के बाद भारत की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं. क्योंकि अफगानिस्तान में जब पिछली बार सत्ता बदली थी तो इसके परिणामस्वरूप 9/11 हमला हुआ था, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इससे उत्पन्न खतरों से अवगत होने की सलाह दी है.
भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन और अल कायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) का बढ़ता प्रभाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है.
भारत ने इस बात पर जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कभी भी आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों या उनके संसाधनों की अनदेखी नहीं करनी चाहिये. इसके साथ ही भारत का कहना है कि उन्हें प्रायोजित और समर्थन करने वाले ऐसे तत्वों (Elements) की दोहरी नीतियों का पर्दाफाश करना जरूरी है. भारत कहीं न कहीं इस बात को लेकर पाकिस्तान और चीन की ओर इशारा कर रहा है.
उभरती टेक्नोलॉजी से खतरे (Danger of New Emerging Technology)
सम्मेलन में जो मुद्दा मुख्य रूप से छाया रहा वो था आतंकवादी समूह डार्क नेट और क्रिप्टोकरेंसी जैसे आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी हथियारों की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह से रूबरू होना. सम्मेलन में भारत की ओर से कहा गया कि आतंकवाद का डायनामाइट से लेकर मेटावर्स (Metaverse) और एके-47 से आभासी परिसंपत्ति (Virtual Property) में परिवर्तन निश्चित रूप से विश्व के लिये चिंता का विषय है. सम्मेलन में कहा गया कि आतंकवाद और ऑनलाइन कट्टरता के लिये उपयोग किये जाने वाले बुनियादी उपकरणों को वितरित किया जाना भी एक बड़ी समस्या है.
उभरती हुई टेक्नोलॉजी को लेकर सम्मेलन में कहा गया कि प्रत्येक देश को अपनी पहंच के भीतर आने वाली सभी श्रृंखलाओं के खिलाफ कार्रवाई कर सकतें है और उन्हें कार्रवाई करनी भी चाहिये.
आतंकवाद समर्थक देशों को लेकर भी चिंताएं
भारत का लगातार कहना है कि कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं. वे उन्हें राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं. भारत लगातारलकह रहा है कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को इसकी कीमत चुकाने के लिए कदम उठाने चाहिए. आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति पैदा करने की कोशिश करने वाले संगठनों और व्यक्तियों को भी अलग-थलग किया जाना चाहिये.
संगठित अपराधों के लेकर भी चर्चा
वहीं संगठित अपराध को लेकर भी की गई चर्चा में कहा गया कि संगठित अपराधों को भी अलग करके नहीं देखा जाना चाहिये और इन गिरोहों के अक्सर आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे संबंध होते हैं. बंदूक बनाने से मिलने वाले पैसे, ड्रग्स और तस्करी के माध्यम से कमाए गए पैसे को आतंकवाद में लगाया जाता है. यहां तक कि मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अपराध जैसी गतिविधियों को आतंक के वित्तपोषण में मदद करने के लिये जाना जाता है.
आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार की पहल
जनवरी 2009 में मुबंई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले के बाद, आतंकवादी अपराधों से निपटने के लिये राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की स्थापना की गई थी. भारत में, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) संशोधन अधिनियम (UAPA) प्राथमिक आतंकवाद विरोधी कानून है. इसके अलावा सूचना तंत्र को मजबूत बनाने के लिए और सुरक्षा से संबंधित जानकारी जुटाने के लिये राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (NATGRID) की स्थापना की गई है. आतंकवादी हमलों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guard) के लिये एक परिचालन केंद्र (Operational Centre) बनाया गया है.