बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के दिन नोटबंदी को लेकर दिए अपने बयान की वजह से बैंकरों के निशाने पर आ गए हैं। नीतीश कुमार ने ये बयान कहीं और नहीं बल्कि बैंकरों के ही एक कार्यक्रम में दिया था। इस कार्यक्रम में उन्हें बतौर अतिथि बुलाया गया था। नीतीश के इस बयान से अब बैंकर्स उन्हें अपना निशाना बना रहे है। वहीं मजेदार बात ये है कि ये सब कुछ वर्चुअल दुनिया में हो रहा है। बैंकर्स ने न धरना –प्रदर्शन दिया, न नारेबाजी की न हड़ताल पर बैठे। वह उनका विरोध सोशल मीडिया पर कर रहें है।
नीतीश के बयान से नाराज लोगों ने सोशल मीडिया खासकर फेसबुक पर नीतीश कुमार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। इनमें ज्यादातर बैंककर्मी ही हैं। देश के अलग-अलग राज्यों, बैंकों में काम करने वाले लोगों ने नीतीश कुमार के ऑफिशियल फेसबुक पेज की रेटिंग घटाना शुरू कर दिया है। पिछले दो दिन में 16 हजार लोगों ने नीतीश कुमार के फेसबुक पेज को 1 रेटिंग दी है। इसका नतीजा ये हुआ कि बिहार के मुख्यमंत्री के फेसबुक पेज की रेटिंग 4.8 से घटकर 1 रह गई है।
ऐसा नहीं है कि पेज को कम रेटिंग करने वाले लोग यह काम दबे-छुपे कर रहे हैं। वो ऐसा करने की वजह भी बता रहे हैं। ज्यादातर लोग ऐसा करते हुए अपनी बात बतौर कमेंट वहां लिख रहे हैं और उन्हीं में से कुछ के अकाउंट चेक करने से यह बात सामने आती है कि ऐसा करने वालों में बड़ी संख्या बैंक कर्मियों की है।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी ब्रांच हेड रंजीत यादव ने नीतीश कुमार के पेज को 1 रेटिंग दी है वो लिखते हैं, ‘महोदय। शायद आप जैसों के लिए ही कहा गया है “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” बैंकरों पर कोई तोहमत लगाने से पहले कभी अपना दामन भी देख लिए होते’
इलाहाबाद बैंक में मैनेजर सुनैना शर्मा भी गुस्से में हैं। उन्होंने लिखा, ‘मिस्टर मुख्यमंत्री अपनी जानकारी सही कर लीजिए। अपनी खराब योजना का भार बैंकर्स पर मत डालिए। आपको बैंकर्स के द्वारा की गई मेहनत का सम्मान करना चाहिए जो उन्होंने नोटबंदी के दौरान की थी।
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आपको बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश ने पटना में राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति द्वारा आयोजित 64वीं त्रैमासिक समीक्षा बैठक में नीतीश ने नोटबंदी की विफलता के लिए बैंकों को जिम्मेदार ठहराया था उन्होंने कहा कि बैंकों की भूमिका के कारण नोटबंदी का लाभ जितना मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिला। उन्होंने कहा था, ‘देश में विकास के लिए जो धनराशि सरकार मुहैया कराती है, उसके सही आवंटन के लिए बैंकों को अपने तंत्र सुदृढ़ करने होंगे।