Presidential Reference सुनवाई में CJI का बड़ा बयान, नेपाल-बांग्लादेश की स्थिति का दिया उदाहरण

0
0
Presidential Reference सुनवाई में CJI का बड़ा बयान
Presidential Reference सुनवाई में CJI का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट में Presidential Reference पर चल रही सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई ने पड़ोसी देशों की मौजूदा स्थिति का उदाहरण दिया। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा – “हमें अपने संविधान पर गर्व है, जरा देखिए हमारे पड़ोसी देशों में क्या हालात हैं। नेपाल में भी हमने यह देखा।” चीफ जस्टिस की इस बात पर संविधान पीठ के दूसरे सदस्य जस्टिस विक्रम नाथ ने सहमति जताई और कहा – “हां, बांग्लादेश में भी।”

पांच जजों की बेंच कर रही है सुनवाई

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा विधेयकों पर स्वीकृति देने से जुड़े 14 अहम सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ विचार कर रही है। इस पीठ में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई के साथ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर शामिल हैं।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका पर भी चर्चा

मंगलवार को हुई सुनवाई में अदालत ने कहा था कि संवैधानिक ढांचे के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल औपचारिक प्रमुख होते हैं और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना पड़ता है।

अहम सवाल – क्या समय-सीमा तय की जा सकती है?

इस Presidential Reference में यह बिंदु भी उठाया गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल को किसी विधेयक पर निर्णय लेने के लिए निश्चित समय-सीमा तय कर सकता है।

अनुच्छेद 143 और प्रक्रिया

भारत का संविधान राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत यह अधिकार देता है कि वे किसी भी कानूनी या सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकें। हालांकि कोर्ट द्वारा दी गई यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती और राष्ट्रपति अंतिम निर्णय मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही लेते हैं।
यह संदर्भ (Reference) तमिलनाडु के राज्यपाल से जुड़े हालिया फैसले के महज एक महीने बाद सुप्रीम कोर्ट में लाया गया है।