Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संस्थापक और यूपी के तीन बार सीएम रह चुके मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सोमवार 10 अक्टूबर को आखिरी सांस ली। इनके निधन पर यूपी की योगी सरकार ने राज्य में 3 दिन का राजकीय शोक रखा है। आखिरकार मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) क्यों बनानी पड़ी? आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी…

Mulayam Singh Yadav: ऐसे पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव
साल 1991 में मुलायम सिंह यादव जनता दल (समाजवादी) के नेता थे। तब लोकसभा उपचुनाव में उनके गृह जिला इटावा से कांशीराम सांसद बने। उस दौरान ही ये दोनों नेता एक-दूसरे के नजदीक आए। एक साक्षात्कार में कांशीराम ने कहा था कि यूपी में मुलायम सिंह उनके साथ आ जाएं, तो सभी विरोधी दलों का किला ध्वस्त हो जाएगा। बता दें कि उसके बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिले। तब कांशीराम ने उन्हें अपनी नई पार्टी बनाने की सलाह दी।
वहीं, उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने अपनी नई पार्टी बनाने के लिए चिंतन-मंथन शुरू कर दिया। तारीख थी 4 अक्टूबर 1992, इस दिन मुलायम सिंह यादव ने यूपी की राजधानी लखनऊ में अपनी नई पार्टी ‘समाजवादी पार्टी’ की स्थापना की। उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल बना। समाजवादी पार्टी के बारे में कहा जाता है कि यह पार्टी एक समाजवादी समाज बनाने में विश्वास रखती है, जो समानता के सिद्धांतों पर काम करती है।
बता दें कि मुलायम सिंह यादव पार्टी के संस्थापक के साथ उसके कई सालों तक अध्यक्ष भी रहे। साल 2016 में मुलायम सिंह को पार्टी का संरक्षक घोषित कर दिया गया था। उसके बाद साल 2017 से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं।

मुलायम के पिता उन्हें बनाना चाहते थे पहलवान
यूपी के इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ था। मुलायम के पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे। इसके लिए मुलायम सिंह को ट्रेनिंग भी दी गई। कुछ समय तक उन्होंने पहलवानी भी की। लेकिन किसको पता था कि इस पहलवानी का असली दंगल तो राजनीति के अखाड़े में होने वाला है। फिर क्या हुआ, मुलायम सिंह पहलवानी के अखाड़े से कब राजनीति के अखाड़े में आ गए, किसी को भनक तक नहीं लगी। मुलायम सिंह यादव ने इटावा से ग्रेजुएशन की और आगरा से राजनीति शास्त्र में पीजी। तब वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे।
पहली बार 1966 में इटावा पहुंचने के बाद मुलायम सिंह को लोहिया का सानिध्य मिला। 1967 में उन्होंने राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा। वे जसवंतनगर सीट से उम्मीदवार बने और जीत गए। यहां से कभी भी मुलायम सिंह यादव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

कई दलों में नेता रहे मुलायम
मुलायम सिंह यादव सबसे पहले लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए और विधायक बने। जब 1967 में लोहिया का निधन हो गया, तो उनकी पार्टी कमजोर होने लगी। उसके बाद यूपी में खासकर पश्चिमी क्षेत्र में किसान नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी ‘भारतीय क्रांति दल’ मजबूत होने लगी। तब मुलायम सिंह ने लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को छोड़कर चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल का दामन थाम लिया था। साल 1974 में इसी पार्टी से मुलायम सिंह एक बार फिर विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे।
मुलायम के राजनीतिक करियर की तीसरी थी पार्टी ‘भारतीय लोकदल’
बता दें कि इमरजेंसी से पहले साल 1974 में चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी भारतीय क्रांति दल का विलय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ कर लिया था। उसके बाद पार्टी बन गई थी ‘भारतीय लोकदल’। मुलायम सिंह को इस पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई।

जेपी की जनता पार्टी में मुलायम
जून 1975 में देश में पीएम इंदिरा गांधी की सरकार में आपातकाल लग गया। तब मुलायम सिंह की मीसा के तहत गिरफ्तारी भी हुई। जब 1977 में जेपी की जनता पार्टी बनी तो मुलायम सिंह पार्टी में शामिल हो गए और मंत्री भी बने। हालांकि 1980 में जनता पार्टी टूट गई। उसके बाद चौधरी चरण सिंह की पार्टी जनता पार्टी (सेक्युलर) में मुलायम सिंह चले गए।
1980 के चुनाव के बाद चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर का नाम बदलकर लोकदल कर दिया गया। बता दें कि 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद उनके बेटे अजीत सिंह और मुलायम सिंह के बीच विवाद हो गया। उसके बाद लोकदल के दो टुकड़े हो गए। मुलायम सिंह के नेतृत्व वाला दल बना लोकदल (ब)।
समाजवादी पार्टी का उदय
1989 में जनता दल बना और मुलायम सिंह ने लोकदल (ब) का उसमें विलय कर दिया। उन्हें इसका फायदा भी हुआ और मुलायम सिंह पहली बार यूपी के सीएम बन गए। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने पर मुलायम चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए। उसके बाद अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया, तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई।

बताया जाता है कि इतने सारे उतार-चढ़ाव के बाद मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी बनाने की ठान ली। यह दूसरा कारण था समाजवादी पार्टी का उदय हुआ। 4 अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी की नींव रखी थी।
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