मुहर्रम के साथ इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना शुरू हो गया है। आज मुहर्रम है लेकिन पहले की तरह सड़कों पर शोर शराबा नहीं है। कोरोना काल के कारण लोग अपने घर में ही मातम मना रहें हैं।
हर साल मातम के साथ ताजिया लेकर कर्बला की ओर जातीं टोलिया सड़कों पर नहीं हैं। भीड़ के बजाए सड़कों पर सन्नाटा और पुलिस की मौजूदगी शहर के रंग को दिखा रही हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक कोरोना काल के वजह से जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी गई है।
सरकार की कोरोना गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम धर्म गुरुओं ने उत्तर प्रदेश में जनता से अपील की थी कि घर के भीतर ही मातम मनाएं अपील का असर ऐसा दिखा कि लोगों ने घरों में ही ताजिए के आगे मातम किया। वहीं यौम-ए-आशूर जुलूस भी कोरोना संक्रमण की वजह से नहीं निकाला गया। हर साल यह जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित नाजिम साहब के इमामबाड़े से निकलता था। जो अपने निर्धारित मार्ग होता हुआ कर्बला तालकटोरा तक जाता था।
बता दें कि जुलूस में शहर की करीब 200 मातमी अंजुमन नौहाख्वानी व सीनाजनी करती हुईं अपने अलम मुबारक के साथ चलती थी। जुलूस में अंजुमनों के संग हजारों अजादार इमाम के गम में आंसू बहाते चलते थे। पर इसबार सरकार की गाइडलाइन का पालन कर शिया समुदाय ने जुलूस को स्थगित कर दिया।
क्या है मुहर्रम ?
अरबी में मुहर्रम का मतलब होता है गम यानी शोक का महीना। मुसलमान रमजान के बाद उसे दूसरा पवित्र महीना मानते हैं। साल के चार पवित्र महीनों में से ये एक है जब लड़ाई मना हो जाती है। साल 2021 के अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, चांद के दिखने पर नए इस्लामी साल की शुरुआत 9 अगस्त से हो सकती है. ये इस्लामी साल 1443 हिजरी होगा।
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बता दें कि, इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत वर्ष 622 में हुई, जब पैगम्बर मुहम्मद और उनके साथी मक्का से मदीना जा बसे। मदीना पहुंचने पर पहली बार मुस्लिम समुदाय की स्थापना की गई, ये एक घटना थी जिसे हिजरी यानी प्रवास के रूप में मनाया जाता है।