भारत में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को कानूनी तौर पर अपराध घोषित करने की मांग काफी समय से हो रही है। जेएस वर्मा की कमेटी ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने की सिफारिश भी की थी। पर केंद्र सरकार (Central Government) का कहना है कि अगर इसे कानूनी मान्यता मिल जाएगी तो पत्नियां अपने पति को सताने के लिए इस कानून का आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं। इस पर केंद्र सरकार ने आज फिर टिप्पणी की है। केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में मैरिटल रेप से जुड़ी एक याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हम पश्चिमी देशों की तुलना अपने साथ नहीं कर सकते हैं। भारत की अपनी समस्याएं हैं।
Marital Rape पर सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए-Central Government

केंद्र सरकार ने 29 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार पर दायर की गई याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हमें आख बंद करके इस मामले में पश्चिमी देशों का अनुसरण नहीं करना चाहिए। अन्य देशों में मैरिटल रेप को कानून की श्रेणी में रखा गया है। पर भारत के अपने मामलात हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि भारत में साक्षरता, आर्थिक कमजोरी, महिला सशक्तिकरण की कमी, गरीबी जैसे इसके कई कारण हैं। इसलिए भारत को इस मामले में बहुत ही सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।
अपने लिखित जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को किसी भी कानून के अंतर्गत परिभाषित नहीं किया गया है। जबकि बलात्कार को आईपीसी की धारा 375 के तहत परिभाषित किया गया है। केंद्र ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपी को सजा दिलाने के लिए कई प्रावधान हैं। जैसे- चोट के निशान, मारपीट, शरीर के अंगों को जबरन छूना, लेकिन वैवाहिक बलात्कार में इन सबूतों की पुष्टि करना मुश्किल होगा।
Marital Rape देश में बढ़ा

बता दें कि भारत का कानून यह मानने के लिए तैयार है कि किसी भी महिला के साथ जबरन संबंध बनाना अपराध है। जबरन बनाए जा रहे संबंध को महिला ना भी कह सकती है लेकिन सरकार और न्यायालय कानूनी रूप देने को तैयार नहीं है।
बता दें कि लॉकडॉउन के बाद से देश में Marital Rape की घटनाओं में खासा वृद्धी देखी गई है। वर्क फ्रॉम होम के कारण महिलाएं अपने पतियों की हवस का शिकार बन रही हैं। इसलिए वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग जोरों शोरों पर उठ रही है।
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