बिहार और देश की राजनीति में बड़ा नाम रखने वाले लालू प्रसाद यादव समय की मांग देखकर अपनी चाल बदलने में माहिर माने जाते है। बिहार चुनाव के समय लालू यादव को इस बात का अंदाजा हो गया था कि देश में मोदी की आंधी काफी तेज है अगर मजबूती से राजनीति की जमीन पर पैर नहीं गाड़े तो शायद आंधी उन्हें बिहार से भी उखाड़ के बाहर फेंक देगी। यही कारण था कि कभी उनके बड़े दुश्मन माने जाने वाले नीतीश कुमार के साथ भी उन्होंने हाथ मिला लिया और महागठबंधन की वजह से सरकार बना पाए।
कुछ ऐसा ही हाल यूपी विधानसभा चुनाव में भी हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी एहसास हो गया था कि बीजेपी और मोदी की आंधी से बचना काफी मुश्किल है। तभी उन्हें कांग्रेस के साथ मजबूरी में गठबंधन करना पड़ा लेकिन फिर भी वे बीजेपी का बाल भी बांका नहीं कर पाए। उधर हाल के विधानसभा चुनावों में मायावती की हालत तो पहले से भी ज्यादा खराब हो गई। विपक्ष के ये सभी नेता सोचते हैं कि अगर सब साथ मिलकर भाजपा का सामना करते तो शायद बात कुछ और होती।
इसी सिलसिले में 27 अगस्त को पटना में होने वाली एक रैली में अखिलेश यादव, मायावती और लालू यादव के एक साथ होने की ख़बर सामने आ रही है। इस रैली में उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती के एक मंच पर आने से सियासी संभावनाओं का दौर बढ़ गया है। लोग इन दोनों को लेकर तरह-तरह की चर्चा करते नजर आ रहे हैं- कि क्या माया और अखिलेश एक साथ आ जाएंगे। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में आयोजित किए जाने वाली महारैली में 27 अगस्त को पटना आने के लिए जहां बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने हामी भर दी है वहीं समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी इस रैली में आने की पुष्टि की है।
जाहिर है इस वक्त देश के कई राज्यों में एक के बाद एक सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी से विपक्ष के मन में डर तो जरूर पैदा हो गया है। यहीं कारण है कि वर्षों से राजनीति के गलियारों में दुशमन बने रहें नेताओं को भी साथ आना पड़ रहा है।