लंबे समय से कोर्ट में मराठा आरक्षण का मामला लंबित पड़ा है। इसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। चुनाव के मौके पर सुनवाई चल रही है। ऐसे में केरल और तमिलनाडु सरकार ने कोर्ट से सुनवाई को टालने के लिए आग्रह किया है।
केरल-तमिलनाडु सरकार का कहना है कि चुनावों के कारण इस सुनवाई को टाल देना चाहिए, क्योंकि ये पॉलिसी से जुड़ा फैसला होगा। ऐसे में सरकार अभी कोई पक्ष नहीं ले सकती है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार के पास अपना जवाब देने के लिए एक हफ्ते का वक्त है। सरकारें अपना लिखित जवाब तैयार करें और अदालत को दें। अभी सिर्फ इस चीज़ पर फोकस है कि इंद्रा साहनी जजमेंट को फिर से देखने की जरूरत है या नहीं।
बता दें कि, इससे पहले सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करके पूछा था कि, क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से अधिक बढ़ाई जा सकती है? इसके बाद अगली सुनवाई की तारीख 15 मार्च तय की गई थी। जिसमें केरल और तमिलनाडु सरकार ने सुनवाई को टालने के लिए कोर्ट से आग्रह कया है।
पिछली सुनवाई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि 15 मार्च से इस मामले पर रोजाना सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुनना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर के अपने एक अंतरिम आदेश में कहा है कि साल 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। तीन जजों की बेंच ने इस मामले को विचार के लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा है। कोर्ट ने कहा कि यह बेंच मराठा आरक्षण की वैधता पर विचार करेगी। जिसके बाद अब पांच जजों की पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार मराठाओं को आरक्षण देने की बात लंबे समय से करते आ रही है। जिसके बाद 2018 में राज्य सरकार ने शिक्षा और नौकरी में 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक कानून बनाया। इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा। जहां कोर्ट ने अपने एक फैसले में इसकी सीमा को कम कर दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।