आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ एलजी कार्यालय पर दिए गए धरने को सोमवार को 8वां दिन पूरा हो गया है। वहीं, दिल्ली सरकार के धरने के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने सवाल उठाया है कोर्ट ने कहा कि समझ नहीं पा रहे हैं कि ये धरना है या फिर हड़ताल है। साथ ही कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि धरने की इजाजत किसने दी थी। दिल्ली हाइकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या एलजी हाउस में बैठने के लिए एलजी की इजाजत ले ली गई है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि इसे आप धरना नहीं कह सकते। आप इस तरह से किसी के ऑफिस या घर में जाकर धरने पर नहीं बैठ सकते। इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस मसले का हल निकालना जरूरी है। कोर्ट ने इस मामले में आईएएस एसोसिएशन को भी पार्टी बनाया है।
वहीं, बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने भी याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट से गुजारिश की है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हड़ताल खत्म करने का आदेश दिया जाए।
विजेंद्र गुप्ता, प्रवेश वर्मा, सिरसा और कपिल मिश्रा ने भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। हाईकोर्ट ने इस याचिका को इस मामले के साथ जोड़ लिया है और सारी याचिकाओं पर सुनवाई 22 जून को होगी। वहीं गृहमंत्रालय और पीएमओ के वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि आईएएस अफसर हड़ताल पर नहीं हैं।
बता दें कि दिल्ली सीएम तीन मांगों को लेकर धरने पर हैं। पहली मांग के मुताबिक, दिल्ली सरकार में कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की हड़ताल तुरंत खत्म कराई जाए, दूसरी मांग काम रोकने वाले आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई की जाए और तीसरी मांग है कि राशन की दरवाजे पर आपूर्ति की योजना को मंजूरी दी जाए।
गौरतलब है कि पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता उमेश गुप्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि दिल्ली सरकार में तैनात आईएएस अधिकारियों की अनौपचारिक हड़ताल ने तत्काल सार्वजनिक कार्यों को रोक दिया है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से यह भी गुजारिश की है कि केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों का उल्लंघन करने के लिए आईएएस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए जो अधिकारियों को हड़ताल पर जाने से रोकती है।
वहीं उमेश गुप्ता की ये याचिका अन्य वकील हरि नाथ राम की याचिका के बाद आई है जिसमें गुजारिश की गई है कि राज निवास में केजरीवाल और उनके कैबिनेट सहयोगियों के विरोध को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि इससे सरकारी मशीनरी थम गई है। यानी दोनों याचिकाओं का मकसद एक ही है, जिसमें एक में तो दिल्ली सरकार निशाने पर है तो दूसरी याचिका में उपराज्यपाल निवास।