पिछले दिनों केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये प्रशासनिक सीमाओं को अंतिम रूप देने की अवधि को जून 2023 तक बढ़ा दिया, जिसके कारण पहले से ही समय से पिछे चल रही 2021 की जनगणना (Census) की कवायद में ओर ज्यादा देरी होगी। भारत (India) की जनगणना का डेटा 2026 तक प्रकाशित होने की उम्मीद है।
क्या है इस फैसले के मायने?
जनगणना करने के दौरान राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को जिलों, तहसीलों, कस्बों के साथ गांवों की सीमाओं को नहीं बदला जा सकता है। इसलिये जनगणना में देरी का सीधे शब्दों में ये अर्थ है कि अभी आने वाले कुछ वर्षों में 2011 में की गई जनगणना के डेटा का उपयोग जारी रहेगा। भारत में लंबे समय से कोरोना (COVID19) के कारण जनगणना का कार्य रूका हुआ है, जिसके सितंबर 2023 में शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है।

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कितनी जगह होता है जनगणना का प्रभाव?
जनगणना के आंकड़ों का उपयोग कर देश की संसद के अलावा राज्यों की विधानसभा, स्थानीय निकायों (Local Bodies) और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (SC & ST) के लिये आरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिये किया जाता है। इसको अगर हम राजनीतिक नजर से देखें तो देश के कई कस्बों और यहां तक कि पंचायतों में जहां पिछले दशक में आबादी की संरचना में तेजी से बदलाव देखा गया है, जिसका अर्थ यह है होगा कि देश के कई हिस्सों में आरक्षित सीटों का अंकगणित बदल जाएगा।
वहीं, जब 2021 की जनगणना के 2026 (संभावित) के बाद जब आंकड़े जारी किए जाएंगे तब तक संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन (Delimitation) वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर ही होता रहेगा।
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कल्याणकारी योजनाओं पर भी प्रभाव
जनगणना में हो रही देरी के कारण सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही देश में बनने वाली स्वास्थ्य, विकास से जुड़ी हुई एवं रोजगार को लेकर बनाई जाने वाली नीतियों पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि इन योजनाओं को भी निर्धारित करने के लिये जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही NFSA के तहत दी जा रही खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से 10 करोड़ लोगों के भी बाहर हो जाने की संभावना है क्योंकि लाभार्थियों की संख्या की गणना के लिये 2011 के डेटा का उपयोग किया जा रहा है जबकि तब से अब तक जनसंख्या में काफी बढ़ोतरी हो चूकी है।
इसके साथ ही वित्त आयोग (Finance Commission) जनगणना के आंकड़ों से मिले डेटा के आधार पर ही केंद्र सरकार को राज्यों को मिलने वाले अनुदान देने की सिफारिश करता है।

क्या होती है जनगणना? Census
किसी भी देश में रहने वाले नागरिकों की जनगणना (Census) एक विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा को इकट्ठा करने उसको कई हिस्सों में (विषयवार) विभाजित करने के साथ-साथ विश्लेषण एवं प्रसार की एक लंबी प्रक्रिया है। इसके साथ ही जनगणना के माध्यम से पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा, सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी और भविष्य की योजनाओं का आधार भी होती है। भारत में प्रत्येक 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है।
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India में जनगणना?
भारत में पहली बार पूर्ण जनगणना वर्ष 1830 में ढाका (अभी बांग्लादेश की राजधानी) शहर की हेनरी वाल्टर जिन्हें भारतीय जनगणना का जनक भी कहा जाता है द्वारा आयोजित की गई थी। इसके बाद भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो (Lord Mayo) के शासनकाल के दौरान वर्ष 1872 में भारत में पहली गैर-समकालिक (non-synchronous) जनगणना की गई थी। वहीं, भारत की पहली जनगणना 1881 में भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन (Sir William Chichele Plowden) द्वारा पूरी कराई गई थी। तब से अभी तक बिना किसी रोक टोक के हर दस साल में एक बार जनगणना आयोजित की जाती रही है।
भारत मे जनसंख्या की जनगणना के दौरान जुटाई गई जानकारी में प्राइवेसी (Privacy) का खास ध्यान रखा जाता है। जनगणना से जुड़े हुए कुछ डेटा को न्यायिक विषयों के लिए कोर्ट में भी प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। भारत में जनगणना अधिनियम, 1948 द्वारा प्राइवेसी की गारंटी दी गई है।
भारत में कौन कराता है जनगणना?
भारत में जनगणना अधिनियम, 1948 (Census Act, 1948) के प्रावधानों के तहत दशकीय जनगणना को गृह मंत्रालय के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त (Registrar General and Census Commissioner of India) के कार्यालय द्वारा कराई जाती है। हालांकि, 1951 तक हुई प्रत्येक जनगणना के लिये तदर्थ (Ad-hoc) आधार पर जनगणना संगठन की स्थापना की जाती थी।
भारत में जनसंख्या जनगणना के भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 (Article 246) के तहत संघ सूची (Union List) का विषय है जिसको संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) के क्रम संख्या 69 में रखा गया है।
क्या है अन्य देशों की स्थिति?
संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कई देशों में हर 10 साल और कनाडा और जापान जैसे देशों में हरेक पांच साल या फिर कुछ देशों में अनियमित अंतराल पर जनगणना कराई जाती है।