इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि लोक दायित्व व व्यक्तिगत दायित्व के बीच विभाजन की एक पतली रेखा है। जिसका निर्धारण कार्य की प्रकृति पर निर्भर करेगा। लोक व व्यक्तिगत कार्य की कसौटी के लिए दो तत्व जरूरी है। पहला व्यक्ति या प्राधिकारी लोक कर्तव्य या कार्य कर रहे हो और दूसरा कार्य लोक कानून के दायरे में किया जा रहा हो,न कि सामान्य कानून पर।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कोई कानूनी प्राधिकारी है तो सिर्फ उसके खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं हो जाती। इसी तरह पक्षों के बीच संविदा मामले में भी याचिका दायर नहीं की जा सकती। कोई भी याचिका तभी पोषणीय होगी जब लोक कानून के तहत लोक कार्य या दायित्व निभाया जा रहा हो।
Uttam Chand Rawat ने याचिका दायर की थी
यह फैसला कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम एन भंडारी (M N Bhandari), न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया (Prakash Padia) तथा न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह (Sanjay Kumar Singh) की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने उत्तम चंद रावत (Uttam Chand Rawat) की याचिका पर दिया है। एकलपीठ ने विभिन्न न्यायिक फैसलों में मतभिन्नता को लेकर विधि प्रश्न पूर्णपीठ को फैसले के लिए भेजा था। सवाल उठा क्या शिक्षा देने का राज्य के कार्य करने वाले प्राइवेट कालेजों के खिलाफ याचिका पोषणीय है? इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले थे। शिक्षा देना सरकार का दायित्व है और प्राइवेट कॉलेज राज्य का दायित्व निभा रहे हैं। यह लोक दायित्व है। पूर्णपीठ ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के तमाम फैसलों का परिशीलन किया। कोर्ट ने कहा कि याचिका सरकारी व प्राइवेट संस्था के खिलाफ हो सकती है,शर्त यह होगी कि उसके कार्य की प्रकृति क्या है। यदि पब्लिक कानून के तहत पब्लिक कार्य है तो याचिका दायर हो सकती है। यदि पब्लिक कार्य है किन्तु सामान्य कानून के तहत कार्य किया जा रहा है तो याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट के इस फैसले से याचिका की ग्राह्यता पर उठने वाले सभी सवालों का हल तय हो गया है।
यह भी पढ़ें : Allahabad High Court ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल से पूछा, ‘फर्जी वकीलों को पकड़ने के लिए क्या कदम उठाए’