एयरफोर्स के मार्शल अर्जन सिंह का कल निधन हो गया। वो अपने आखिरी समय में आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती थे जहां उन्होंने आखिरी सांसे लीं। सरकार ने बताया है कि 98 साल के अर्जन सिंह ने शनिवार रात 7 बजकर 47 मिनट पर आखिरी सांस ली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्शल अर्जन सिंह के निधन पर शोक जताया और कहा कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय उनके शानदार नेतृत्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता जब भारतीय वायुसेना ने उनके नेतृत्व में मजबूती से कार्रवाई की थी। उन्होंने ट्वीट किया, ‘भारत एयरफोर्स मार्शल अर्जन सिंह के दुभार्ग्यपूर्ण निधन पर शोक जताता है। हम राष्ट्र के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवा को याद करते हैं। उन्होंने ट्विटर पर मार्शल अर्जन सिंह से जुड़ी तस्वीरें शेयर कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

बता दें कि अर्जन सिंह ने महज 44 साल की उम्र में वायु सेना चीफ बनने की उपलब्धि हासिल की थी। 1962 में चीन से जंग का जब आखिरी दौर चल रहा था, तब वह
डिप्टी चीफ ऑफ एयर स्टाफ नियुक्त हुए थे और 1963 में ही वाइस चीफ बन गए। जब देश आजाद हुआ था तो उन्हें वायु सेना के 100 से ज्यादा विमानों के फ्लाई पास्ट की अगुवाई करने का सम्मान मिला। उन्हें 60 से ज्यादा किस्म के विमानों को उड़ाने का अनुभव था, जिनमें कई द्वितीय विश्व युद्ध से पहले के जमाने के थे।

इसके अलावा कहा जाता है कि 1965 की लड़ाई के वक्त उन्होंने सिर्फ एक घंटे में वासुसेना को तैयार कर पाकिस्तान पर हमला बोल दिया था। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी भी है कि लड़ाई के वक्त अर्जन सिंह से पूछा गया कि वायु सेना को तैयारी में कितना वक्त लगेगा। उन्होंने बेहिचक जवाब दिया-एक घंटा। बात को कायम रखते हुए वायु सेना ने एक घंटे के अंदर पाकिस्तान पर हमला बोल दिया।

पूरे जंग के दौरान अर्जन सिंह ने वायु सेना को शानदार नेतृत्व दिया। कई बाधाओं के बावजूद उन्होंने जीत दिलाई। इस योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण तो दिया ही गया, उनका चीफ ऑफ एयर स्टाफ का दर्जा बढ़ाकर एयर चीफ मार्शल कर दिया गया। वह भारतीय वायु सेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने। इससे भी बड़ी बात यह कि 2002 में भारत सरकार ने उन्हें मार्शल रैंक से नवाजा और इस तरह वह एयर फोर्स के पहले और एकमात्र फाइव स्टार रैंक अफसर बने।

इतना ही नहीं वायु सेना में अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में भी वह विमान उड़ाते रहे। जुलाई 1969 में रिटायर होने के बाद स्विट्जरलैंड के राजदूत बनाए गए थे। 1989 से 1990 के बीच वह दिल्ली के उप-राज्यपाल भी रहे। पानागढ़ स्थित एयर फोर्स स्टेशन का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

गौरतलब है कि अपने आखिरी दिनों में भी उनमें सेना का अनुशासन अंतिम सांस तक बरकरार रहा। पीएम मोदी ने उनसे जुड़ा हुआ किस्सा लोगों से साझा करते हुए कहा कि कुछ अरसे पहले बीमार होने के बावजूद और रोकने के बावजूद उन्होंने मुझे सलामी दी थी। इसी तरह का एक वाकया जुलाई 2015 में सामने आया था जब उन्होंने व्हील चेयर से उठकर पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को श्रधांजलि दी थी।