चौथी क्लास में पढ़ने वाले गनेश्वर को स्कूल भवन के भीतर बैठकर पढ़ने में डर लगता है। डर इस बात का, कि कहीं स्कूल की छत भरभरा कर गिर ना जाए और दबकर उसकी जान ना चली जाए। आलम ये है कि गनेश्वर और उसके साथ स्कूल में पढ़ने वाले पहली से पांचवीं तक के सभी बच्चे भरी बरसात में स्कूल के बाहर लगाए गए टेंट के नीचे अपना भविष्य गढ़ रहे है।
देशभर में शिक्षा के सच को दिखाती ये तस्वीर छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के जरहाडीह गांव की है। आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लाक मुख्यालय से महज दो किलोमीटर की दूरी पर जरहाडीह गांव स्थित है। और यहां के प्राइमरी स्कूल के बच्चों की चिंता स्वाभाविक है क्योंकि साल 2000 मे बना स्कूल भवन साल 2011 में ही इतना जर्जर हो गया कि उसके भीतर बैठकर पढ़ना तो दूर उसके अंदर जाना भी खतरे से खाली नही हैं। छत का प्लास्ट झड़ कर गिर गया है।
गनीमत है कि जिस वक्त छत का प्लास्टर गिरा उस वक्त बच्चे क्लास में नहीं थे वरना कोई बड़ा हादसा हो सकता था। स्कूल की स्थिति इस कदर जर्जर है कि बारिश के दिनो मे तो भवन के छत का कोई ऐसा हिस्सा नही है जहां से पानी नही टपकता हो। लिहाजा पिछले चार साल से स्कूल के शिक्षक बच्चो को कभी गांव के रामलाल तो कभी श्यामलाल के घर मे पढ़ा रहे थे। लेकिन इस साल गांव के लोगों ने अपने हाथ खडे कर दिए और नतीजतन शिक्षकों ने टेंट और पंडाल खरीदा और इस साल से बच्चों को स्कूल के किचन सेड के बगल मे टेंट की छाव में बिठाकर शिक्षा दी जा रही है।
करीब 250 की आबादी वाले सरगुजा जिले के गांव जरहाडीह के प्राइमरी स्कूल की ये स्थिति शिक्षा का अधिकार अधिनियम को मुंह चिढ़ाता नजर आता है। भवन की जर्जर स्थिति को देखते हुए स्कूल में नियुक्त शिक्षक नंदलाल सिंह ने 2011 से अब तक हर साल उदयपुर बीईओ आफिस को भवन जर्जर होने की सूचना देकर मरम्मत की मांग की। शिक्षक नंदलाल सिंह के पास सभी शिकायती पत्रों की कॉपी मौजूद है लेकिन लेकिन मलाई खाने में मस्त विभागीय अधिकारियों को इस जर्जर स्कूल की सुध लेने की फुरसत नहीं मिल पाई है।
टेंट में पढ़ते बच्चे और जानलेवा जर्जर स्कूली इमारत की तस्वीर लिए जब हम सरगुजा के जिला शिक्षा अधिकारी से मिले तो साहब के पास वक्त नहीं था ऐसे में चलते चलते जवाब दिया कि मेरी इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं है। डीईओ साहब राजीव गाँधी सर्वशिक्षा मिशन के अधिकारियों पर जिम्मेदारी थोपते हुए हुए चलते बने।
जिला शिक्षा अधिकारी से मिलने के बाद हम राजीव गांधी सर्व शिक्षा मिशन के जिला अधिकारी से मिले और स्कूल की दुर्दशा के बारे में बात की तो उन्होंने जांच करा कर आवश्यक कार्रवाई का भरोसा दिलाया।
इस गांव मे जर्जर स्कूल भवन के अलावा ऐसा कोई सरकारी भवन नहीं है जिसे स्कूल के उपयोग में लाया जा सके। और यही वजह है कि चार साल गांव के लोगो के रहमोकरम पर चलने के बाद अब स्कूल टेंट में चल रहा है।