फतवा जारी करना आजकल मजाक बन गया है। आए दिन कोई न कोई मुस्लिम संगठन किसी के भी खिलाफ फतवा जारी कर देते हैं। ऐसे में फतवा की महत्वता भी कम होती जा रही है। फतवा जारी करने का अब एक नया मामला सामने आया है। हैदराबाद की प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्था जामिया निजामिया ने फतवा जारी कर कहा है कि मुसलमानों को झींगा खाने से परहेज करना चाहिए। फतवे में कहा गया है कि झींगा मछली की श्रेणी में नहीं आता है और इसके सेवन से बचना चाहिए। जामिया निजामिया एक शताब्दी पुरानी संस्था है और यह शहर की प्रतिष्ठित इस्लामी संस्था है।

हालांकि  झींगा मछली यानी प्रॉन खाने के खिलाफ जारी फतवे को मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने हास्यास्पद बताया है।  फतवे के खिलाफ कई मुफ्ती खुलकर सामने आ गए हैं। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के मुफ्ती मोहम्मद अबरार ने झींगे को हराम बताने वाले फतवे का कड़ा विरोध किया है। मुफ्ती मोहम्मद अबरार ने कहा, ‘झींगे के अंदर खून नहीं होता। यह मछली प्रजाति की तरह है और इसे खाने में कोई हर्ज नहीं है.’ उलेमा-ए-देवबंद भी झींगा खाने को हराम नहीं मानता। झींगा खाने के खिलाफ दिए गए फतवे का मुस्लिम छात्रों ने भी विरोध किया है।

इतिहासकार राना सफवी ने कहा कि फतवा सिर्फ सलाह है जो किसी के सवाल पूछने पर दी जाती है। इसे मानने या न मानने की कोई बंदिश नहीं होती। फतवा (राय) वही दे सकता है जो कुरान या हदीस को पूरी तरह पढ़ चुका हो।  इस पर लेखिका शीबा असलम फहमी ने कहा कि ऐसा फतवा जारी करने वाले कुएं के मेंढ़क हैं। ये लोग जानते तक नहीं होंगे कि दुनिया के बहुत से इस्लामिक देशों में झींगा मछली खाई जाती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here