सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 के तहत ED की जांच शक्तियों को चुनौति देने वाली याचिकाओ पर सुनवाई के दौरान ED को CrPC के दायरे में लाने और संशोधन के जरिए ED को दी गई शक्तियां उसके पहले के उद्देश्य से किस तरह विपरीत हैं, इसपर विचार कर रहा है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि ED की शक्तियां पुलिस के समान हैं। इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधानों के अधीन होनी चाहिए।
Enforcement Directorate प्रिक्रियाओं का पालन करने की जरूरत नहीं- वकील
इस मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने कहा PMLA के तहत ED को किसी मामले में CrPC में निर्धारित गिरफ्तारी और जांच के लिए प्रक्रियाओं का पालन जरूरी नहीं है, जो कि दूसरे क्रिमिनल लॉ में दी गई है। इसकी वजह से ED को आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के बिना ही काम करने की अनुमति मिल जाती है।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क दिया कि PMLA में संशोधन वित्त अधिनियम, 2019 के माध्यम से पेश किया गया और ED के दायरे में बड़ी संख्या में अपराधो को लाया गया, जबकि PMLA ज्यादातर बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और दंडित करने के लिए सीमित था।
Enforcement Directorate की तरफ से वकील ने क्या कहा?
सिब्बल ने दलील दी कि संसद द्वारा PMLA के दायरे को बढ़ाए जाने से ED का प्रयोग अपराध की गंभीरता को देखे बिना किया जा रहा है। मनी बिल के जरिए वित्त अधिनियम, 2019 के तहत ED को इतनी अधिक शक्तियां देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि मनी बिल के तहत संशोधन करने से इसपर राज्यसभा की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे बहस की गुंजाइश ही कम हो जाती है।
सिब्बल ने सवाल उठाया कि PMLA में संशोधनों को मनी बिल के रूप में पारित किया गया जबकि इसमे वित्त संबंधी कोई प्रावधान शामिल नहीं है। जिसके जरिए मनी बिल के जरिए संसोधन को सही ठहराया जा सके। सिब्बल का कहना कि यह कहा जा सकता है कि सरकार का यह कदम अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने और परेशान करने के लिए लिया गया है।
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