न जाने वो दिन कब आएगा जब भारतीय राजनीति में राजनेता अपने काम के बल पर जीतेगा न कि दूसरों पर आरोप लगाकर या उपहास उड़ाकर। अब ऐसे दिनों को लाने में देश के नेता भले ही कोई जोर-आजमाइश न करें लेकिन चुनाव आयोग ने इसकी शुरूआत कर दी है। जी हां, गुजरात चुनाव आयोग ने बीजेपी को सख्त हिदायत दी है कि वो अपने चुनाव प्रचार में पप्पू नाम का इस्तेमाल न करें। यही नहीं उन्होंने इस प्रकार के कुछ विज्ञापनों को पब्लिश करवाने से भी बीजेपी को रोक दिया है। दरअसल, वर्तमान में गुजरात चुनाव पास है। ऐसे में चुनाव आयोग यह नहीं चाहती कि किसी नेता की छवि को इस कदर खराब किया जाए कि उसका प्रभाव जनता पर पड़े। इसलिए गुजरात चुनाव आयोग ने बीजेपी को पत्र भेजकर चुनाव प्रचार अभियान से जुड़े टीवी, विज्ञापन, होर्डिंग, पोस्टर और बैनर इत्यादि में पप्पू नाम के जिक्र पर आपत्ति जतायी।
बीजेपी ने चुनाव आयोग के इस रुख पर आपत्ति जतायी है। बीजेपी का कहना है कि वो अपने प्रचार में किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लेती, ऐसे में चुनाव आयोग का ये रुख ठीक नहीं है। लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि परोक्ष रूप से किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का उपहास उड़ाना भी उचित नहीं है। बता दें कि चुनाव आयोग ने बीजेपी के विज्ञापनों पर तीन आपत्तियां जताईं। इसमें से एक विज्ञापन में दुकान पर आए एक आम आदमी के लिए ‘पप्पू’ नाम इस्तेमाल किया गया था। इसमें दुकान पर काम करने वाला कहता है, ‘सर, पप्पू भाई आए लगते हैं।’
चुनाव आयोग के इस रुख के बाद बीजेपी अब अपने विज्ञापनों के लिए कोई नया मसाला ढूढ़ रही है। गुजरात बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, “चुनाव प्रचार से जुड़ी कोई भी सामग्री तैयार करने से पहले हमें मंजूरी लेने के लिए उसे गुजरात CEO की मीडिया कमिटी को भेजना पड़ता है। कमिटी ने विज्ञापन की स्क्रिप्ट में पप्पू शब्द को अपमानजनक करार देते हुए आपत्ति जताई। हमें इसे हटाने या उसकी जगह कोई दूसरा शब्द इस्तेमाल करने का निर्देश दिया गया है।” अब भाजपा इसकी जगह दूसरा कोई शब्द इस्तेमाल करेगी और जांच के लिए चुनाव आयोग को भेजेगी। ऐसे में बिन ‘पप्पू’ के बीजेपी के चुनाव प्रचार में कितना फर्क आएगा, यह देखने लायक होगा।