पंजाब सरकार में मंत्री और कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने इस्लामाबाद गए थे। वहां वे पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष कमर जावेद बाजवा से गले मिले थे। वहीं जिक्र हुआ था कि सिख धर्मावलंबियों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर तक जाने वाले रास्ते को खोला जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने भी इस कॉरिडोर को खोले जाने और विकसित करने में रुचि दिखाई है। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को डर है कि इस मार्ग का दुरुपयोग भी हो सकता है।
सिद्धू ने पाक मीडिया से बातचीत में कहा था कि “मैं राजनेता नहीं, दोस्त बनकर यहां आया। मैं मोहब्बत का पैगाम लेकर हिंदुस्तान से यहां आया। जितनी मोहब्बत मैं लेकर आया था, उससे 100 गुना ज्यादा वापस लेकर जा रहा हूं। जो वापस आया वो सूद समेत है। मुझे जो एक दिन में मिला, वो पूरी जिंदगी नहीं मिलता। जनरल बाजवा ने मुझे गले लगाया और कहा कि हम शांति चाहते हैं। बाजवा ने मुझसे कहा कि हम गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मौके पर करतारपुर गुरुद्वारे की तरफ जाने वाला रास्ता खोलने पर विचार कर रहे हैं। यह मेरा फर्ज है कि मैं देश वापस जाकर सरकार से एक कदम बढ़ाने को कहूं। अगर हम एक कदम आगे बढ़ाएंगे तो यहां के लोग दो कदम आगे बढ़ाएंगे।”
दरअसल पाकिस्तान में अभी भी खालिस्तान समर्थकों की तादाद काफी ज्यादा है और उन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन हासिल है। ऐसे में आशंका है कि इस कॉरिडोर का उपयोग करते हुए खालिस्तान समर्थक पंजाब के युवाओं को उग्रवाद के लिए उकसा सकते हैं। इतना ही नहीं, इस मार्ग का उपयोग नशीली दवाओं की तस्करी के लिए भी किया जा सकता है। यह बेहद दुखद लेकिन सच है कि इस महान धर्मस्थल के क्षेत्र को पाकिस्तान में खालिस्तान और आईएसआई का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां कई ब्लैकलिस्टेड खालिस्तानी आतंकियों के अड्डे आज भी सक्रिय हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, करतारपुर कॉरिडोर खोलने के लिए पाकिस्तान की रजामंदी इस बात का सबूत है कि वह धार्मिक और मानवीय पहलु की आड़ में इस मार्ग से अपने घटिया मंसूबों को पूरा करना चाहता है। इस मार्ग को खोलने और विकसित करने को वो पूरी दुनिया में प्रचारित कर रहा है। पाकिस्तानी प्रोपेगैंडा यह कहता है कि वह शांति का पक्षधर है, इसीलिए वह भारतीय श्रद्धालुओं के लिए यह मार्ग खोलने को राजी हुआ है।