पानी की तेज धार के बीच बड़े-बड़े पत्थरों के बीच हथेली पर जिंदगियों का मेला। बांस के पुल पर उफनती धारा से 40 फीट ऊपर से लहरों से अठखेलियां करती कल्पगंगा नदी को पार करना आम लोगों की कल्पना से परे हैं। इस से पैर फिसला, आपका संतुलन गड़बड़ाया तो आप कहां जाकर रुकेंगे ये किसी को नहीं पता। उत्तराखंड आपदा की तस्वीरें आज भी रौंगटे खड़े कर देती है। इस आपदा ने समूचे उत्तराखंड के साथ ही चमोली के जोशीमठ विकासखंड में भी भयंकर तबाही मचाई थी। कल्पगंगी की उफनती धार ने स्थायी पुल को लील लिया था, न जाने कितनी तबाही हुई थी। लेकिन उससे भी दर्दनाक बात तो ये है कि, पांच वर्षों बाद भी जोशीमठ विकासखंड स्थित गांवों के लोगों की जिंदगी की सरकार को कोई परवाह नहीं दिखती।
पैर फिसलने की देर है मौत की नहीं, 2013 की आपदा में बहा स्थायी पुल
2013 की आपदा में इस घाटी में कल्पगंगा ने रौंगटे खड़े करने वाला कहर बरपाया था। 2013 की आपदा में जोशीमठ विकासखंड के कल्पगंगा पर बना पक्का पुल बह गया था जो पांच सालों बाद भी आज तक नहीं बन पाया है। आज भी इस पुल से जाने वाले भेटा और भर्की गांव के लोग जान जोखिम में डालकर कच्चे पुल से होकर गुजर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी ग्रामीण कंधों पर सामान लाद कर ऊफनती कल्पगंगा नदी को पार करने को मजबूर हैं।
कल्पगंगा नदी कभी भी बरपा सकती है कहर
उत्तराखंड आपदा की तस्वीरें आज भी रौंगटे खड़े कर देती है। इस आपदा ने समूचे उत्तराखंड के साथ ही चमोली के जोशीमठ विकासखंड में भी भयंकर तबाही मचाई थी। कल्पगंगा की उफनती धार ने स्थायी पुल को लील लिया था, न जाने कितनी तबाही हुई थी। लेकिन उससे भी दर्दनाक बात तो ये है कि, पांच वर्षों बाद भी जोशीमठ विकासखंड स्थित गांवों के लोगों की जिंदगी की सरकार को कोई परवाह नहीं दिखती। 2013 की भीषण आपदा के बाद आज भी उर्गम घाटी के लोगों का जीवन पटरी पर नहीं लौट पाया है। सबसे बड़ी बात यह है कि आपदा के बाद आज तक नये पुल का निर्माण नहीं हो सका है।
स्कूली बच्चे कभी भी हो सकते हैं हादसे का शिकार
पहाड़ों पर हो रही बारिश से लगातार कल्पगंगा का जलस्तर बढने के कारण सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चे उठा रहे हैं। जो हफ्ते भर से स्कूल तक नहीं जा पा रहे है। क्यूंकि कल्पगंगा नदी पर बना कच्चा पूल कभी भी बारिश और तेज आंधी की भेंट चढ़ सकता है। ऐसे में न जाने कितनी जिंदगियां कल्पगंगा की धार में बहकर स्वाहा हो सकती हैं।
तेज लहर और पत्थरों के ऊपर कांपते हैं पैर
कल्पगंगा पर स्थानी पुल के न बनने से 16 जुलाई से पहाडों में शुरु हो चुके सावन के पवित्र महीने में भी डर पसरा है। क्योंकि, पंच केदारों में अंतिम केदार प्रसिद्ध कल्पेश्वर में जल चढाना इस बार मुश्किल हो रहा है क्योंकि जोशीमठ विकासखंड के भेटा और भर्की गांव के लोगों के लिये बाबाद भोले के दरबार में जाने का यही एकमात्र रास्ता है। लेकिन 2013 की भीषण आपदा के बाद आज तक कल्पगंगा पर पक्का पुल नहीं बन पाया है और शिव भक्त आज भी जान जोखिम मे डालकर मंदिर तक पहुंच रहे हैं।
भेटा और भर्की गांव की जान हथेली पर
2013 की भीषण आपदा के बाद आज भी उर्गम घाटी के लोगों का जीवन पटरी पर नहीं लौट पाया है। सबसे बड़ी बात यह है कि आपदा के बाद आज तक नये पुल का निर्माण नहीं हो सका है।
सरकार की काहिली से जोशीमठ विकासखंड की सबसे सुन्दर घाटी उर्गम घाटी आज भी दुर्गम है। विकास खंड के भेटा और भर्की गांव के लोग लगातार जान की बाजी लगाकर नदी पार कर रहे हैं। ये स्थानीय लोगों की मूलभूत जरुरत है लेकिन सरकारों के कानों पर अब तक इसे पूरा करने की जू तक नहीं रेंगी। ऐसे में सवाल यही कि, क्या सरकार लोगों के तनिक पैर फिसलने का इंतजार कर रही है। क्योंकि, बांस के पुल पर जरा सा पैर फिसला नहीं कि जनता के जिस्म से जान हमेशा के लिये जुदा होनी करीब-करीब तय है।
एपीएन ब्यूरो