तमाम बाधाओं को पार करते हुए 90 के दशक में बीजेपी की स्थापना करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिवस है। वाजपेयी को न केवल उनकी पार्टी के लोग पसंद करते थे बल्कि विपक्ष के लोग भी बेहद पसंद करते थे। इन्होंने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से न केवल व्यापक स्वीकार्यता और सम्मान हासिल किया
पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की आज 96वीं जयंती मनाई जा रही है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के सदैव अटल स्मारक पहुंच पूर्व पीएम वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार और भारतीय जनता पार्टी देश के अनेक हिस्सों में इस कार्यक्रम को मना रही है।
25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ। अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी थे। वाजपेयी का संसदीय अनुभव पांच दशकों से भी अधिक का विस्तार लिए हुए है।
वाजपेयी की जिंदगी के किस्से ‘आदर्श राजनीति, लोकप्रिय नेता, सह्रदय कवि’ पर चर्चा के दौरान जिक्र किए जाते हैं। इस वक्त जब देश में जनादेश एक पार्टी को मिला है और नरेंद्र मोदी इसके केंद्र हैं तो वाजपेयी का नाम इसलिए भी याद किया जाता है जिन्होंने 1999 में बतौर प्रधानमंत्री वैसे गठबंधन का नेतृत्व किया जिसमें 24 पार्टियां थीं और 81 मंत्री थे।
देश का प्रधानमंत्री होने पर भी उनका व्यक्तित्व कमाल था। बीजेपी के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए, वो भी तब जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने में बीजेपी को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था।
अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। इसके बाद 1957 में वह सांसद बने। अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे। वहीं, वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहे। इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे थे।
अपनी भाषण कला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह बीजेपी के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।
1957 भारतीय लोकतंत्र का बचपन था 52 में पहला चुनाव हुआ था। देश में डेमोक्रेसी आकार ले ही रही थी। नामांकन, प्रचार, मतदान, वोटों की गिनती सब कुछ नया था। पराधीन भारत में अंग्रेजों की सरपस्ती में कुछ चुनाव हुए थे, लेकिन भारत से लोकतंत्र का पहला वास्ता 1952 में ही हुआ था। इसी लोकतंत्र की नर्सरी में वाजपेयी अपना राजनीतिक भाग्य आजमाने को उतरे थे।
लोकतंत्र के इसी बैकड्राप में बेहद सीमित संसाधनों के साथ वाजपेयी 1957 का चुनाव लड़ने उतरे।आज के जमाने में कारों के काफिले और बाइक रैली को देखकर आदी हो चुकी जनता को शायद ही यकीन हो कि उस जमाने में नेता साइकिल, बैलगाड़ी और पैदल तक से प्रचार करते थे। जीप तो प्रत्याशी को ही मिल पाती थी।