बड़ी तादाद में बांग्लादेशी घुसपैठियों के भारत में घुस आने की वजह से असम सरकार की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। मुसीबत ये है कि कौन देश का नागरिक है और कौन घुसपैठी? ये पहचान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा है।

वैसे तो जन्म प्रमाणपत्र से इस बात का आसानी से पता लगाया जा सकता है कि कौन सा व्यक्ति भारत देश का निवासी है और कौन बांग्लादेश का। लेकिन आज के भ्रष्टाचार के दौर में नकली जन्म प्रमाणपत्र बनवाना बच्चों का खेल हो गया है। इसलिए असम सरकार ने ये आदेश दिया था कि इस मामलें में जन्म प्रमाणपत्र को एक पुख्ता सबूत नहीं माना जा सकता और इससे ये बात साबित नहीं होती कि कोई व्यक्ति भारत का निवासी है या फिर किसी ओर देश का।

लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार के इस फैसले को गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि पंचायतों द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र को देश में नागरिकता हासिल करने के लिए वैध दस्तावेज माना जाएगा।

इससे पहले जब गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पंचायत द्वारा बनाए गए प्रमाण पत्र को अवैध घोषित किया था तो इसका बुरा प्रभाव असम में रहने वाली 29 लाख महिलाओं पर पड़ा था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि इन महिलाओं के पास अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र ही एकमात्र दस्तावेज था। इसलिए अब कोर्ट ने ये आदेश पारित किया है कि जन्म प्रमाणपत्र को नागरिकता साबित करने के लिहाज से वैध माना जाएगा।

असम सरकार ने नागरिकों को दो श्रेणियों में बांटा था। जिनमें से करीब एक करोड़ नागरिकों को मूलनिवासी नागरिकों का दर्जा दिया गया था जबकि अन्यों को गैर मूलनिवासी नागरिकों का दर्जा दिया था। बता दे कि असम में 3 करोड़ लोग ऐसे है जो गैर मूल निवासी की श्रेणी में आते हैं।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार के इस फैसले को भी गलत ठहराया है। कोर्ट ने कहा, मूलनिवासियों और गैर मूल निवासियों के बीच कोई अंतर नहीं माना जाएगा। नागरिकता सिर्फ एक होती है और वो है-‘भारत की नागरिकता’।
सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार द्वारा जारी किए गए सभी नियमों को खोखला साबित कर दिया है। असम में अब तक 25 मार्च 1971 से पहले के दस्तावेजों को मान्यता प्रदान नहीं की जाती थी,  लेकिन अब यदि किसी व्यक्ति के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 25 मार्च 1971 से पहले के दस्तावेज हैं तो उसे भी भारतीय माना जाएगा।

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