यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी उत्तर पूर्वी भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरा दमखम लगा रही है। अरूणाचल प्रदेश, असम और मणिपुर के बाद अब बीजेपी की नजर अगले साल त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। इसी के मद्देनजर बीजेपी पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 6 और 7 मई को दो दिन के त्रिपुरा दौरे पर हैं।
त्रिपुरा में 2018 के जनवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी को समझ आ गया हैं कि अगर उन्हें अपने विजय रथ को त्रिपुरा तक ले जाना है तो उससे पहले उन्हें सभी बाधाओं को खत्म करना पड़ेगा। लिहाजा अमित शाह ने अभी से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। दरअसल, त्रिपुरा के पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य के 60 सीटों में से बीजेपी 50 सीटों पर लड़ी थी जिनमें से 49 सीटों पर उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी। वहीं कांगेस ने 48 सीटों पर चुनाव लड़कर 10 सीटों पर जीत हासिल की वहीं त्रिपुरा की सबसे बड़ी पार्टी सीपीएम ने 55 सीटों पर चुनाव लड़कर 49 सीटों पर जीत हासिल की और बहुमत की सरकार बनाई।
त्रिपुरा की 60 सीटों वाली विधानसभा में इस बार भाजपा की कोशिश 1988 से सत्ता में रहे मानिक सरकार के हाथ से कमान छीन कर कॉम्युनिस्ट राज को खत्म करने की है। हालांकि अमित शाह के लिए ये काम इतना आसान तो नहीं है लेकिन भाजपा ने इसको आसान बनाने के लिए काफी पहले से मेहनत शुरू कर दी थी। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2014 में त्रिपुरा में भाजपा कार्यकर्ताओं की संख्या 15,000 थी जो अब बढ़कर 2 लाख तक पहुंच गई।
अमित शाह अपने दो दिन के दौरे के दौरान चुनावी रणनीति का खाका तैयार करेंगे. इसके लिए संगठन के नेताओं की बैठक लेंगे, बुद्धिजीवियों से मुलाकात करेंगे, त्रिपुरा में चुनावी रैली करेंगे और संघ के प्रचारकों से संवाद करेंगे।
अमित शाह के दौरे के बाद पार्टी की योजना हर महीने एक केंद्रीय मंत्री और बीजेपी शासित राज्य के मुख्यमंत्री को त्रिपुरा में प्रचार के लिए भेजने की है। इसके लिए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास, असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडु के नाम तय भी किए गए हैं। ये लोग उत्तर-पूर्व के लिए केंद्र की चलाई जा रही योजनाओं को बताने का काम करेंगे।