उत्तर प्रदेश में सत्ता बदली लेकिन नहीं बदला तो राशन माफियाओं का नेटवर्क। केंद्र और राज्य सरकार गरीब लोगों को सस्ता राशन देने के लिए तरह-तरह की योजनाएं चला रही है लेकिन राशन माफिया के आगे सारी व्यवस्थाएं फेल हैं। हर सरकार में अपनी पैठ बनाकर गरीबों के हक पर डाका डालने वाले राशन माफिया की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि वे अपने आगे किसी को टिकने नहीं देते। किसका कार्ड बनना है किसका निरस्त होना, यह सब कोटेदार तय करते हैं। वजह है कि महकमे के कुछ कर्मचारियों से मिलकर वे अपना काम सीधा करा लेते हैं।

एक ही नाम से जारी किए गए कई राशन कार्ड

मामला कानपुर देहात का है जहां सरकार ने राशन की कालाबाजारी पर लगाम लगाने के लिए ई-पॉश यानि इलेक्ट्रानिक प्वाइंट ऑफ सेल जैसी आधुनिक व्यवस्था शुरू की लेकिन गरीबों का हक डकारने की आदत डाल चुके कोटेदारों ने इस व्यवस्था में भी सेंध लगा दी। यहां के रसूलाबाद तहसील में एक कोटेदार ने एक ही नाम से कई कई राशन कार्ड बनाकर गरीबो के पेट पर डाका डाल रहे है। रसूलाबाद तहसील में 117 राशन कार्ड ऐसे पाए गए है जहां एक नाम के कई राशन कार्ड बने जिसकी शिकायत ग्रामीणों ने जिलाधिकारी से की लेकिन कोई सुनवाई नही हुई। वही ग्रामीणों ने वकील की तरफ से कोर्ट में DSO और ARO, कोटेदार,  रसूलाबाद तहसील और पूर्व SDM पर मुकदमा दर्ज कराने की अपील की है। वहीं कोटेदार है कि अपने नाते रिश्तेदारों के नाम पर राशन कार्ड बनवा कर काला बाजारी कर रहे हैं।

सरकारी योजनाओं को पलीता लगा रहे कोटेदार

हालांकि फर्जी राशन कार्डों को पकड़ने के लिए सरकार ने नई योजना चलाई जिसके लिए राशन कार्डों का सत्यापन सरकारी कर्मचारियों के जरिए कराया गया लेकिन वहां भी यह माफिया कामयाब ही रहे। केंद्र में मोदी और यूपी में योगी सरकार बनने के बाद लोगों को ऐसा लग रहा था कि कोई भी भ्रष्ट अब बच नहीं पाएगा। गरीबों के लिए राज्य सरकार की तरफ से सस्ते दर पर अनाज देने के लिए खुलीं जन वितरण प्रणाली की दुकानों में भारी गड़बड़ी पकड़ी गई है। पीडीएस से बांटे जानेवाले अनाज को खुले बाजार में बेच दिया गया है। राशन की दुकान चलाने करने वाले लोग ही गरीबों का राशन खुले बाजार में बेचकर सीधा मुनाफा अपनी जेब में डाल रहे हैं।

बड़ा सवाल ये है कि जिस तरह से कोटेदार गरीबों का हक मार ले रहे हैं उनके हिस्से के अनाज को बेच कर मुनाफा कमा रहे हैं ऐसे में आखिर इन गरीबों को सुनेगा कौन? क्या ये सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजी तौर पर हैं?

एपीएन ब्यूरो

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