उत्तराखंड के पौड़ी जिले में एक सड़क हादस में 47 लोगों की मौत ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिये हैं । धूमाकोट में एक बस दो सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी, जिसमें 45 से अधिक लोगों की मौत हो गई। कुछ की हालत नाजुक है। पिपली-भौन सड़क पर ये दुर्घटना क्वीन्स ब्रिज के पास हुई । 28 सीटों वाली यह एक प्राइवेट बस थी । हादसे के बाद हमेशा की तरह राज्य सरकार ने बेशक मृतकों के परिवारवालों को दो-दो लाख रुपये मुआवाजे का ऐलान कर दिया हो, लेकिन क्या इतने भर से ,सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है ?
उत्तराखंड में सड़क हादसों में मौतों के आंकड़े जिस तरह से लगातार बढञ रहे हैं, उसके बाद यह सवाल उठना लाजिमी है ।केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय भी इस मुद्दे को लेकर अपनी चिंता जताता रहा है। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संगठन की एक एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 400 ब्लैक स्पॉट हैं । ब्लैक स्पॉट यानि वह जगह जहा हमेशा सड़क की खामियों के कारण दुर्घटनाए होती है । इनमें से ज्यादातर प्वांइट तो चारधाम यात्रा मार्ग पर हैं जिस पर देश –विदेश के लोग सफर करते हैं। इन सड़कों पर अक्सर राज्य के बाहर ड्राइवर गाड़ियां चला रहे होंतेहैं जिन्हें ब्लैक प्वाइंट की जानकारी नहीं होती । सवाल उठता है कि आखिर उत्तराखंड सरकार इन सड़क हादसों को रोकनेके लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही ?
अकेले 2017 में उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं में 950 लोगों की जानें गई, , जबकि 1600 के करीब लोग घायल हुए। इसमें सबसे ज्यादा सड़क हादसे देहरादून, ऊधमसिंहनगर, नैनीताल और हरिद्वार में हुए। इन सड़क हादसों की विवेचना पर गौर करने पर पता चलता है हादसों के लिए ओवर लोडिंग मुख्य रुप से जिम्मेदार होते हैं।
सड़क हादसों के कारण
उत्तराखंड में पर्वतीय रास्तों पर सवारी वाहनों की संख्या बहुत कम है । इसकी वजह से प्राइवेट वाहन चालक क्षमता से अधिक यात्री गाड़ियों में बिठा लेते हैं। बसों की कमी के कारण यात्रियों के पास भी इन गाड़ियों में भेड़ बकरियों की तरह ठुस कर यात्रा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता । पहाड़ों में लोगों के सामने शाम होने से पहले घर पहुंचने की मजबूरी होती है ।
यह ओवरलोडिंग आए दिन वाहनों की टक्कर और उनके खाई में गिरने जैसे दर्दनाक हादसों का कारण बनता है । रविवार को पौड़ी में जो हदसा हुआ उसके पीछे भी ओलरलोडिंग एक बड़ा कारण था । 28 सीट वाले बस में 50 से अधिक मुसाफिर सवार थे ।
उत्तराखंड में सड़क हादसो के लिए सड़क किनारे खुली शऱाब दुकानें भी कम जिम्मेदार नहीं है । सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और राज्य के राज मार्गों के किनारे से शराब दुकानें हटाने का आदेषश दिया था, तो उस वक्त एक चौंकनेवाली जानकारी सामने आई थी । उत्तराखंड में शराब की 68 प्रतिशत दुकानें सड़क के किनारे ही थी । इनमें से अब कई दुकानें बद हो चुकी है लेकिन अब भी कई दुकानें हादसों को बढ़ावा दे रही है ।
इतना हीं नहीं उत्तराखंड की सडकों पर अनफिट वाहन भी खूब दौड़ रहे हैं। इनके खिलाफ परिवहन विभाग बिल्कुल आंखें बद करके बैठा हुआ है । इसके अलाला बिना हैवी ड्राविंग लाइसेंस के हजारों चालक उत्तराखंड की सड़कों पर गाड़ियां चला रहे हैं ।
अगर परिवहन विभाग अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझे और ओवर लोडिंग, अनफिट वाहनों के चलने पर रोक लगाने के साथ ही बिना हैवी ड्राइविंग लाइसेंस के चालकों को वाहन न चलाने दे तो निश्चित तैार से उत्तराखंड में सडक हादसों पर लगाम लगाई जा सकती है।