Congress: पंजाब के बाद अब गोवा में भी बिखरने लगा कुनबा

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Congress में मचा है घमासान। राजनीति में सत्ता कब किस करवट बैठ जाए यह तो ऊपर वाला भी नहीं बता सकता है। अपने स्वर्णिम कल के साथ आज के लुटे-पीटे दौर में अपनी साख को बचाने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रस पार्टी के पास शायद अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता के केंद्र में आने के बाद से ही कांग्रेस एक-एक कर अपने सारे किले यानी राज्यों को खोती जा रही है और वह भी आपसी कलह के कारण। दरअसल आजादी के बाद नेहरू के काल में कांग्रेस समाजवादी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रही थी, जो धीरे-धीरे सामंती व्यवस्था के चंगुल में जकड़ गई।

कांग्रेस अस्तित्व बचाने के लिए कर रही है संघर्ष

नेहरू के बाद इंदिरा, राजीव, सोनिया और अब राहुल गांधी की कमान में कांग्रेस की जो विचारधारात्मक गिरावट आई है, उसी का परिणाम है कि आज कांग्रेस जनता के बीच अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दिनरात संघर्ष कर रही है।

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कांग्रेस के एक-एक गढ़ ढहते गये और शीर्ष नेतृत्व केवल एकटक उसे निहारने के सिवाय कुछ नहीं कर पाया। इसकी शुरूआत उत्तराखंड की हरीश रावत की सरकार से शुरू हुई। उसके बाद गोवा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, बिहार और उत्तर-पूर्व के राज्यों में एक-एक कर कांग्रेस सत्ता से बेदखल होती रही और दूसरी तरफ आलाकमान मंथन ही करता रहा।

राजस्थान में भी सत्ता जाने की नौबत आ गई थी लेकिन कहिये कि अशोक गहलोत जैसे नेता हैं कि अपनी नाव को मझधार में भी पार लगा गये। अब बात करते हैं पंजाब की। पंजाब में सबकुछ शांत चल रहा था लेकिन शांति के आ गये हरफनमौला नवजोत सिंह सिद्धू।

पंजाब में गुटबाजी ले डूबी पार्टी को

बीजेपी से इंपोर्ट हुए सिद्धू पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने इस कदर भरोसा करना शुरू किया कि कैप्टन अमरेंदर सिंह कब क्लीन बोल्ड हो गये। यह खुद कैप्टन को भी नहीं पता चला। वैसे अगर कैप्टन को जरा भी अंदाजा होता कि राजनीति की ढलती शाम में सिद्धू उनके लिए राहू बन जाएंगे तो वह कभी भी अपनी राजनैतिक कुंडली में उन्हें आने ही नहीं देते। खैर सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उसके साथ ही कैप्टन सत्ता की जंग हार गये।

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कैप्टन अमरिंदर बड़े बेआबरू होकर सत्ता की गद्दी से बेदखल कर दिये गये। शीर्ष नेतृत्व ने “Sorry Amrinder” कहकर पल्ला झाड़ लिया। उसके बाद पंजाब कांग्रेस में भूकंप आना ही था। इस पूरे मामले में लॉटरी लगी चरणजीत सिंह चन्नी की। विवादों की थाल चन्नी को सजाकर मिला मुख्यमंत्री का पद।

इस बात से नाखूश सिद्धू ने ठोंक दिया कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा। कैप्टन अमरिंदर सिंह कह रहे हैं कि सिद्धू को पूरे पंजाब में कहीं से जीतने नहीं दूंगा यानी कुल मिलाकर अमरिंदर अब पूरी ताकत के साथ कांग्रेस को हराएंगे और शीर्ष नेतृत्व से “Sorry Amrinder” का बदला लेंगे।

कांग्रेस के भीतर बना वरिष्ठ नेताओं का बना G-23 का ग्रुप

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की सोच कांग्रेस को आत्महत्या की ओर ले जा रही है। दरअसल राहुल गांधी कांग्रेस की ओवरहालिंग में तपे-तपाये बूढ़े नेताओं को एक-एक कर किनारे लगाते जा रहे हैं। उनकी इस बात से नाराज बूढ़े कांग्रेसियों ने कांग्रेस के अंदर ही G-23 नाम का एक गुट बना लिया है।

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यह गुट सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन परोक्षरूप से राहुल गांधी की सोच को चुनौती दे रहा है। इस पूरे मामले में कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने खामोशी अख्तियार कर ली है। अब देखना है कि विवादों के बीच कांग्रेस पंजाब विधानसभा और अभी हाल में होने वाली यूपी विधानसभा का चुनाव किस तरह से लड़ती है।

पंजाब के गोवा में भी लग गई बगावत की आग

कांग्रेस अभी पंजाब में हुए झगड़े को लेकर तो परेशान है ही अब खबर गोवा से आ रही है कि वहां भी कांग्रेस के विधायकों का पार्टी से मोहभंग हो रहा है। ताजा जानकारी के मुताबिक 40 सदस्यी विधानसभा में केवल 4 सदस्यों वाली कांग्रेस के नेता अब दूसरी पार्टी में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। खबरों के मुताबिक कर्टोरिम से पार्टी के विधायक एलेक्सो रेजिनाल्डो लौरेंको कांग्रेस का दमन छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं।

ये कयास उनके सोशल मीडिया पर साझा किये गये उनके दर्द से पता चलता है। लौरेंको ने 30 सितंबर को अपनी सोशल मीडिया की पोस्ट में लिखा है, “हम सही समय पर सही निर्णय लेंगे क्योंकि कुछ नेताओं ने हमारी प्रगति को नष्ट कर दिया। अब अच्छे फैसले का समय है।”

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कांग्रेस का किला जिस तरह से दरक रहा है, उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में यह पार्टी कहीं टेक्ट बुक में न सिमट कर रह जाए। खैर इस मामले में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जितना जल्दी सचेत हो जाए तो बेहतर होगा। वैसे सभी पार्टी में नेताओं के बीच महत्वाकांक्षा की लड़ाई होती है लेकिन जब वो लड़ाई पार्टी से बड़ी हो जाती है तो उसका नुकसान उस पार्टी को ही उठाना पड़ता है। कांग्रेस के वर्तमान हालात कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं।

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