केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गुरुवार 8 दिसंबर को संसद में बताया कि इस समय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointment Commission – NJAC) को फिर शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक लिखित सवाल के जवाब देते हुए यह जानकारी दी।
आज यानि 9 दिसंबर 2022 को पंजाब से कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव पर लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Notice) नोटिस दिया था। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका (Judiciary) में शांतिपूर्ण संबंध होने चाहिए। न्यायपालिका पर केंद्र और उपराष्ट्रपति की टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है और अच्छे संकेत नहीं देती है। इसलिए मैं यह प्रस्ताव लाया हूं।
क्या है NJAC को लेकर पूरा मामला?
केंद्र सरकार द्वारा 2014 में ‘99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2014’ के जरिये देश में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम सिस्टम को वर्ष 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) द्वारा बदलने का प्रयास किया था।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के तहत उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति को और अधिक पारदर्शी बनाने का प्रस्ताव रखा। NJAC में कहा गया था कि आयोग द्वारा उन सदस्यों का चयन किया जाएगा जो न्यायपालिका, विधायिका और नागरिक समाज से संबंधित होंगे।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ (Constitutional Bench) ने वर्ष 2015 में NJAC को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह भारत के संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) का उल्लंघन करता है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence) के लिये खतरा है।
6 अक्टूबर 2015 में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को निरस्त कर दिया था। इस अधिनियम के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली को खत्म करने का प्रस्ताव दिया गया था।
लेकिन हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि लोकतांत्रिक इतिहास में इस प्रकार का कोई और उदाहरण नहीं है, जहां संवैधानिक रूप से पारित किए गए कानून को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया हो।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम द्वारा भेजे गये जजों की नियुक्ति से संबंधित लंबित प्रस्तावों की संख्या के बारे में रिजिजू ने बताया कि पांच दिसम्बर 2022 तक उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्ति का एक प्रस्ताव और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के आठ प्रस्ताव केंद्र के पास भेजे गये हैं।
रिजिजू ने आगे कहा कि उच्च न्यायपालिका (हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट) में खाली पड़े पदों को भरना कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत्, एकीकृत और सहयोगात्मक प्रक्रिया है। इसके लिये राज्य के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर संवैधानिक अधिकारियों से परामर्श और अनुमोदन की जरूरत होती है।
सुप्रीम कोर्ट भी कर चूका है सरकार के रूख की आलोचना
28 नवंबर 2022 को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के रुख की कड़ी आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार कॉलेजियम सिस्टम की ओर से भेजे गए नामों पर फैसला नहीं लेकर नियुक्ति प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह इस बयान को कोर्ट के संज्ञान में लेकर आए थे जिसके बाद कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सामने अपना रुख स्पष्ट किया है।
28 नवंबर को ही जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा था कि, क्या राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC) के खारिज (सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे 6 अक्टूबर 2015 को खारिज कर दिया गया था) होने के कारण केंद्र ऐसा कर रहा है? ऐसा मालूम होता है कि सरकार इससे खुश नहीं है और इसी कारण कॉलेजियम के भेजे नामों को लेकर देरी की जा रही है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू के कॉलेजियम को लेकर दिए बयान से तो ऐसा ही प्रतीत होता है, लेकिन एक स्थापित कानून को नहीं मानने का यह कोई कारण नहीं है।
क्या कहा था Kiren Rijiju ने?
देश के कानून मंत्री किरण रिजिजू ने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि, “मैं कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना नहीं करना चाहता। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि इसमें कुछ कमियां हैं और जवाबदेही नहीं है। इसमें पारदर्शिता की भी कमी है। अगर सरकार ने फाइलों को रोककर रखा हुआ तो फाइलें न भेजी जाएं।”
इससे पहले भी कानून मंत्री कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते रहे हैं, एक बार उन्होंने कहा था कि न्यायाधीश योग्यता को दरकिनार कर अपने पसंद के लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं।
भारत में जजों की नियुक्ति? Appointment of Judges in India?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) (Article 124(2) और 217 (Article 217) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति से संबंधित हैं।
भारत में सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति अनुच्छेद 124 (2) के तहत की जाती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), राज्य के राज्यपाल के सलाह से की जाएगी। इसमें ये भी कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय नहीं ली जाती।
इस समय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश एक कॉलेजियम (Collegium) द्वारा की जाती है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह प्रस्ताव दो वरिष्ठतम सहयोगियों के परामर्श से संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है। इसके बाद सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो केंद्रीय कानून मंत्री को प्रस्ताव राज्यपाल को भेजने की सलाह देता है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस नीति के आधार पर की जाती है कि राज्य का मुख्य न्यायाधीश संबंधित राज्य से बाहर का होगा।
इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों (Retired Judges) की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति, जो उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है, से उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।
पिछले कुछ समय से उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों (High Court) में लगातार बढ़ते लंबित मामलों (Pendency of Cases) से निपटने के लिये सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति पर जोर दिया है। अदालत ने तदर्थ न्यायाधीश (Ad-hoc Judge) की नियुक्ति और कार्यपद्धति को लेकर मौखिक दिशा-निर्देश भी दिये थे।
कौन-कौन होते NJAC में शामिल?
पदेन अध्यक्ष के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), पदेन सदस्य के रूप में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज, पदेन सदस्य के रूप में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री के अलावा नागरिक समाज के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (एक समिति द्वारा नामित किये जाएंगे जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के प्रधानमंत्री और लोकसभा के विपक्ष के नेता शामिल होंगे; प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से नामित किये जाने वाले व्यक्तियों में एक अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग / अल्पसंख्यक या महिला होगी) भी इसका हिस्सा होते.
क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और कॉलेजियम प्रणाली में अंतर-
भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की सिफारिश NJAC द्वारा वरिष्ठता के आधार पर की जानी थी जबकि SC और HC के न्यायाधीशों की सिफारिश क्षमता, योग्यता और “नियमों में निर्दिष्ट अन्य मानदंडों” के आधार पर की जानी थी। NJAC के कोई भी दो सदस्य सिफारिश संबंधी निर्णय पर वीटो कर सकते थे।
कॉलेजियम सिस्टम? (Collegium System)
कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण (Appointments and Transfer) की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा नहीं बनाई गई है। ये प्रणाली सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के जरिये विकसित हुई है।
कैसे विकसित हुई Collegium प्रणाली?
प्रथम न्यायाधीश मामला (1981) में निर्धारित किया गया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) के सुझाव की “प्रधानता” को “ठोस कारणों” (Solid Reasons) के चलते अस्वीकार किया जा सकता है। इस एक फैसले ने अगले 12 वर्षों (दूसरा न्यायाधीश मामला 1993 तक) के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी।
वहीं दूसरा न्यायाधीश मामला (1993) में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत करते हुए कहा कि “परामर्श” (Advice) का अर्थ वास्तव में “सहमति” (Consent) है। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि नियुक्ति के मामलो में CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत (Institutional) राय होगी।
इसके अलावा 1998 के तीसरे न्यायाधीश मामले में राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेजिडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) (अनुच्छेद 143) के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।
न्यायपालिका में Uncle Syndrome?
जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं होने और इनमें परिवारवाद को वरीयता देने को लेकर काफी समय चर्चाएं होती रहती है, जिसे अंकल सिंड्रोम (Uncle Syndrome) कहते हैं। अंकल सिंड्रोम में होता यह है कि जब जज बनाने के लिये वकीलों या फिर न्यायिक अधिकारियों के नाम प्रस्तावित किये जाते हैं तो किसी भी स्तर पर किसी से कोई राय नहीं ली जाती।
भारत के विधि आयोग ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में उच्च न्यायालयों में ‘अंकल जज’ की नियुक्ति के मामले का उल्लेख किया है, जिसमें यह कहा गया है कि जिन न्यायाधीशों के रिश्तेदार और जानकार उसी उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्हें वहां नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
इसके अलावा जिन लोगों का नाम प्रस्तावित किया जाता है उनमें से कई पूर्व जजों के परिवार से होते हैं या उनके सगे-संबंधी होते हैं। सिस्टम में विशेष पहुंच के कारण इनके नामों को प्रस्तावित किया जाता है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ठीक नहीं होता है। पारदर्शिता (Transparency) के अभाव में न्यायपालिका में नियुक्तियां जब निजी संबंधों और प्रभाव के आधार पर की जाती हैं तो न्यायपालिका में इस परंपरा को ‘अंकल सिंड्रोम’ कहा जाता है।