अंग्रेज भारत का काफी कुछ लूट कर ले गए। लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां ऐसी-ऐसी महान विभूतियों का जन्म हुआ जिसे न कोई लूट कर ले जा सकता है और न कोई मिटा सकता है। ऐसी महान विभूतियां इतिहास के पन्नों में इस तरह दर्ज है कि आज उनकी याद में सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया को गर्व महसूस होता है। आज उर्दू के प्रसिद्ध लेखक, कवि और आलोचक अब्दुल कावि देसनवी की 87वीं जयंती है। भारतीयों के साथ-साथ गूगल भी आज अब्दुल कावी देसनावी का जन्मदिन मना रहा है। गूगल ने आज अपने डूडल के लोगो पर उनकी फोटो लगाई है। साथ ही डूडल को उर्दू लिपि में डिजाइन करके देसनावी को कुछ अलग अंदाज में मुबारकबाद दी है।
1930 में बिहार के दसना गांव में पैदा हुए अब्दुल क़ावी ने भारत में उर्दू साहित्य के प्रोत्साहन में अहम भूमिका निभाई। जावेद अख्तर, इकबाल मसूद, मुजफ्फर हनफी जैसे शायर और लेखक उनके शार्गिद रहे हैं। पांच दशकों से ज्यादा के अपने करियर में दसनवी ने उर्दू साहित्य में कई किताबें लिखीं। देसनवी के लेखन में ‘हयात-ए-अब्दुल कलाम आजाद’ आजादी के अगुआ रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद पर लिखी जीवनी को उनके महान कामों में से एक माना जाता है। देसनवी ने भोपाल के बारे में जो रिसर्च की थी बाद में उसे दो किताबों की शक्ल दी गई। पहली किताब का नाम था ‘अल्लामा इकबाल और भोपाल’, दूसरी का नाम था ‘गालिब भोपाल’।
देसनवी का जन्म बिहार के नालंदा जिला के देसना में 1930 में मुस्लिम विद्वान सैयद सुलेमान नदवी के परिवार में हुआ था। वह 1990 में भोपाल के सैफिया पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में उर्दू विभाग के प्रमुख के तौर पर सेवानिवृत्त हुए थे। देसनवी के पिता का नाम सैयद मोहम्मद सईद रजा था जो सेंट जेवियर कॉलेज, मुंबई में उर्दू, फारसी और अरबी के प्रफेसर थे। दसनवी के दो भाई थे-बड़े भाई का नाम प्रोफेसर सैयद मोही रजा और छोटे का नाम सैयद अब्दुल वली देसनवी था। अब्दुल कावी देसनवी सिर्फ उर्दू भाषा के जानकार नहीं थे बल्कि उस समय के जाने-माने लेखक भी थे। उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें आज दुनियाभर में जाना जाता है।