जरा सी गले में खराश, जमकर करते हैं Antibiotics का इस्तेमाल! आंख मूंद कर खाने से पहले हो जाएं सावधान

बताते चले कि इससे पहले, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी इस पर एक रिसर्च किया था। रिसर्च में पता चला था कि कोरोना के इलाज में एजिथ्रोमाइसिन के इस्तेमाल से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हुआ।

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Antibiotics
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Antibiotics: कोरोना के इलाज में इस्तेमाल दवाओं के बारे में थोड़ा-बहुत आप भी जानते ही होंगे। जरा सी गले में खराश हो या कोरोना संक्रमित का इलाज, डेढ़ साल पहले कोरोना फैलने के बाद से ही एजिथ्रोमाइसिन दवा का जमकर इस्तेमाल किया जाने लगा है। अब इन्हीं दवा पर किए गए रिसर्च में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। दरअसल, लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ-ईस्ट एशिया में प्रकाशित शोध में इस दवा के बारे में कई चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।

Antibiotics: अधिकांश दवाओं को CDSCO से नहीं मिला था मंजूरी

शोध में कहा गया है कि इनमें से अधिकांश दवाओं को CDSCO द्वारा मंजूरी नहीं मिला था और “महत्वपूर्ण नीति और नियामक सुधार” के लिए कहा गया था। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर की एजेंसियों के बीच नियामक शक्तियों में ओवरलैप देश में एंटीबायोटिक उपलब्धता, बिक्री और खपत को जटिल बनाता है। शोध 1 सितंबर को प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

रिपोर्ट के प्रमुख रिसर्चर डॉक्टर मुहम्मद एस हाफी (Dr Muhammed S haffi) ने कहा कि भारत में एजिथ्रोमाइसिन समेत बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। एजिथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किफायत के साथ किया जाना चाहिए। एंटीबायोटिक्स जैसे ड्रग का इस्तेमाल उसी सूरत में किया जाना चाहिए जब किसी मरीज की जान संकट में हो और उसके अंदर अज्ञात बैक्टीरिया पुख्ता संदेह हो। उन्होंने कहा कि गले के इंफेक्शन में दिए जाने वाला एंटीबायोटिक्स भी प्रिजर्व हो सकता है। इस रिसर्च को भारतीय पब्लिक हेल्थ फांउडेशन नई दिल्ली के साथ किया गया है।

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Antibiotics को लेकर चौंकाने वाले खुलासे

अध्ययन में कहा गया है, “हालांकि भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रति व्यक्ति खपत दर कई देशों की तुलना में कम है, भारत बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक दवाओं का उपभोग करता है जिन्हें कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”

रिपोर्ट के अनुसार, देश में रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स के डोज का कुल 44% बिना इजाजत वाली दवाइयां हैं। इसमें 1,098 यूनिक फॉम्युलेशन वाली और 10,100 यूनिक ब्रैंड की दवाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 46% दवाई सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के नियमों पर खड़े उतरते हैं। हालांकि, इस रिसर्च में देश में केवल एंटीबायोटिक्स के दुरुपयोग को लेकर ही खोजबीन की गई है।

बताते चले कि इससे पहले, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी इस पर एक रिसर्च किया था। रिसर्च में पता चला था कि कोरोना के इलाज में एजिथ्रोमाइसिन के इस्तेमाल से किसी तरह का कोई फायदा नहीं हुआ। असर के नाम पर यह सिर्फ एक प्लेसिबो की तरह काम कर रही थी। यानी यह गोली खाने के बाद मरीजों को केवल लगता है कि उन्हें आराम मिला है, जबकि ऐसा होता नहीं है।

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