Birth Control Pills इन दिनों अनचाहे प्रेगनेंसी से बचने के लिए महिलाएं धड़ल्ले से सेवन कर रही हैं। गर्भधारण (Pregnancy) करने में हार्मोंस (Hormones) का बड़ा योगदान होता है और ये गोलियां उन हार्मोंस को काम करने से रोकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भनिरोधक गोलियों मे एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन (Estrogen and Progesterone) होता है और ये हार्मोंस नेचुरल नहीं होते, बल्कि इन हार्मोंस का सिंथेटिक वर्जन गोली में डाला जाता है। ये सिंथेटिक हार्मोन प्राकृतिक हार्मोन से ज्यादा प्रभावी होता है। इन गोलियों को अभी भी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Food and Drug Administration) से मान्यता नहीं मिली। इन गोलियों को लेते ही कई बार मासिक शुरू हो जाता है और कई बार तय समय से आगे पीछे हो जाता है। कई बार भारी रक्तस्त्राव और तेज दर्द की शिकायत होती है। इन गोलियों को लेने से प्रजनन प्रणाली प्रभावित होना, मासिक चक्र अनियमित होना, सिरदर्द, मूड स्विंग्स, बालों के झड़ने, वजन बढ़ना, त्वचा में एलर्जी, मुहांसा निकलना, थकान, पेट दर्द, ब्रेस्ट पेन, मतली, योनि स्राव और कैंसर जैसी समस्या भी हो सकती है।
कैसे काम करती हैं गोलियां
गर्भ निरोधक गोली (Birth Control Pill) में सिंथेटिक एस्ट्रोजन (Synthetic Estrogen), एथीनील एस्ट्रॉडिऑल (Ethinyl Estradiol) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) होते हैं। एथीनील एस्ट्रॉडिऑल बच्चेदानी में अंडाणु विकसित होने से रोकता है, जबकि प्रोजेस्टेरोन बच्चेदानी के मुहाने पर मोटी परत जमा देता है, जिससे बच्चेदानी में स्पर्म के लिए कोई जगह नहीं रह पाती। अगर कोई अंडाणु गर्भाशय के अंदर चला भी जाता है तो वो वहां विकसित नहीं हो पाता और नष्ट हो जाता है। रिसर्च के मुताबिक गोलियों के साथ जो आर्टिफिशियल हार्मोन किसी महिला के शरीर में जाते हैं वे कुदरती हार्मोंस के साथ सही तालमेल नहीं बैठा पाते।
ये है साइड डिफेक्ट
लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोली के इस्तेमाल से पीरियड के समय पेट दर्द, कमर दर्द, छाती में दर्द या भारीपन जैसे समस्या होती है। अधिक ब्लिडिंग से कमजोरी हो सकती है। दरअसल गर्भनिरोधक गोलियों में मौजूद हार्मोन के साइड इफेक्ट से शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्त्रियों का वजन भी बढ़ने लग जाता है। बर्थ कंट्रोल में भारी मात्रा में एस्ट्रोजन होता है जो भूख को खत्म करने के बाद भी वजन बढ़ा देता है। गर्भनिरोधक गोलियों के अधिक सेवन से गर्भाशय की झिल्ली धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है।
गर्भपात के खतरे बढ़ जाते हैं। गर्भनिरोधक गोलियों में एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा अधिक होती है जो शरीर में जरूरत से ज्यादा हो जाए तो महिलाओं में स्तन से जुड़ी समस्याएं शुरू हो जाती है। इसके कारण स्तन कैंसर का खतरा भी बना रहता है। अधिक मात्रा में इन गोली के सेवन से खुजली, जलन और योनि इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। ये गोलियां सेक्स हार्मोन का प्रोडक्शन रोक देती है, जिससे महिलाओं में सेक्स के लिए रूचि कम होने लगती है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 83 फीसदी अमरीकी महिलाएं उन गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, जिनमें ऐसे प्रोजेस्टेरोन का इस्तेमाल होता है जो मेल हार्मोन से तैयार होता है। इन गोलियों में मर्दों के जिस टेस्टेस्टेरोन हार्मोन का इस्तेमाल होता है, उसका नाम है नैंड्रोलोन। ये वो हार्मोन है जो मर्दों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम को विकसित करता है। जब महिलाएं इस हार्मोन को गर्भ निरोधक गोली के रूप में लेती हैं तो उनके शरीर में भी पुरुषों जैसा बदलाव आने लगता है। रिसर्चर्स के मुताबिक 40, 50 और 60 के दशक में महिलाओं ने गर्भपात से बचने के लिए नोरथिंडरोन हार्मोन का इस्तेमाल किया था जो एंड्रोजेनिक था।
होने लगते हैं हार्मोनल चेंजेज
इस हार्मोन के सेवन से गर्भपात तो रुके, लेकिन महिलाओं को दूसरी समस्याएं होने लगीं। उनके शरीर पर धब्बे पड़ने लगे, चेहरे पर बाल उगने लगे और आवाज में भी बदलाव आने लगा। यहां तक कि हर पांच लड़कियों में एक ऐसी बच्ची पैदा होने लगी, जिसका लिंग मर्दाना था। हालांकि अब ऐसी गोलियां बनने लगी हैं, जिनमें एंड्रोजेनिक प्रोजेस्टेन कम होता हैं। इसके अलावा बाकी के हार्मोन सिंथेटिक एस्ट्रोजन के साथ मिलाए जाते हैं, जिससे हार्मोन के मर्दाना असर कम हो जाते हैं। रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं एंड्रोजेनिक प्रोजेस्टेन वाली गोलियों का सेवन करती हैं, उनके दिमाग पर असर पड़ता है उनकी याददास्त कमजोर होने लगती है।
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