Environment: मार्केट में एक से बढ़कर स्टाइलिश और खास छाताएं मौजूद हैं।बावजूद इसके देश में एक तबका ऐसे लोगों का भी है, जिनके पास आज भी बारिश से बचाव का कोई साधन नहीं है।लिहाजा वे प्रकृति के सहारे ही खुद को बारिश से बचाते हैं। झारखंड में रहने वाले जोहार आदिवासी समुदाय के लोग पौधे लगाने के साथ उनके रखरखाव पर ध्यान रखते हैं। इतना ही नहीं इस पेड़ की लकड़ी से लेकर पत्ते की उपयोगिता भी भली-भांति जानते हैं।
सागौन के पत्तों से बनी एक खास प्रकार की प्राकृतिक छाता का इस्तेमाल करते हैं। जिसे देखकर आप भी चौंक जाएंगे। इनके पर्यावरण प्रेम और अधिक से अधिक लोगों तक पौधे लगाने के संदेश को देखकर यहां के मुख्यमंत्री तक सराह चुके हैं।
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Environment: पीढ़ी दर पीढ़ी पुरखों से सीखी खास कला
इसे सागौन और सागवान दोनों की नामों से पुकारा जाता है।आज भी यहां का आदिवासी समुदाय इसके पत्तों का छाते के तौर पर इस्तेमाल करता है। ज्यादातर इस तरह के प्राकृतिक छाते बुजुर्गो के पास देखने को मिल जाते हैं।आदिवासी समुदाय के पास ऐसी कई चीजों के ज्ञान का है। यह कला उन्होंने कहीं डिग्री लेकर नहीं बल्कि सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पुरखों से हासिल की है।
Environment: सागवान है खास रिश्ता
वर्तमान में जिसे हम झारखंड राज्य कहते हैं वो बिहार राज्य के दक्षिण में छोटा-नागपुर पठार का हिस्सा है। तत्कालीन अविभाजित बिहार के इसी झारखंड में सत्तर के दशक में झारखंड आंदोलन काफी प्रसिद्ध हुआ था। बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह झारखंड आंदोलन दो प्रकार के झाड़ों के झगड़े से पैदा हुआ था।इनमें से एक झाड़ था- आदिवासियों का प्रिय साल, तो दूसरा था-सागवान, जो व्यापारियों की पसंद का झाड़ था।
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झारखंड वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आदिवासी और जंगल का रिश्ता खून के रिश्ते से भी ज्यादा गहरा होता है। अंग्रेजों के जमाने से ही वन संपदाओं पर औपनिवेशिक शासकों ने पूरा कब्जा जमा लिया था। ये सिलसिला वन अधिकार कानून के आने के पूर्व तक कायम रहा। बावजूद इसके यहां के लोगों ने पर्यावरण के प्रति अपनी ममता से मुंह नहीं मोड़ा। इसी का नतीजा है कि आज भी प्रकृति इन्हें अनेक ऐसे उपहार देती है।जिसका महत्व वे
बखूबी समझते हैं।
Environment: आइये जानें सागवान के बारे में बहुत कुछ
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सागवान कहें या सागौन इसके अलावा अंग्रेजी में इसे टीक के नाम से भी जाना जाता है। ये पेड़ सबसे ज्यादा अपनी लकड़ी और उसकी मजबूती के लिए जाना जाता है। संस्कृत में शाक के नाम से प्रसिद्ध ये पेड़ सदाहरित वनों में पाए जाने के कारण सदैव हराभरा रहता है।आमतौर पर इसकी लंबाई 30-40 मीटर यानी करीब 90 से 120 फीट के पास होती है। इस पेड़ की पत्तियां हरे रंग में अंडाकार और बड़ी होती हैं। करीब 25 वर्ष की आयु वाले इस पेड़ को झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में पाया जाता है।
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