शनिवार का दिन बेहद ही खास है, खास इसलिए है क्योंकि आज फिल्म जगत के सुपरस्टार वी. शांताराम का जन्मदिन है। वी. शांताराम ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के दम से सभी भारतीयों के दिल में अलग ही जगह बनाई हैं। आज वो हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन उनकी सुपरहिट फिल्मों के लिए आज भी उन्हें  दिल से याद किया जाता हैं। इसी कड़ी में आज गूगल ने भी वीं. शांताराम को याद करते हुए उनकी 116वीं वर्षगांठ पर डूडल बना कर श्रद्धांजली अर्पित की है

वी.शांताराम ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत एक निर्देशक के रूप में की थी। उन्होंने 1927 में पहली फिल्म ‘नेताजी पालकर’ डायरेक्ट की थी। जिसके सफल निर्देशन के बाद वीं. शांताराम फ़िल्मी दुनिया में अपनी छवि बनाने में सफल साबित हुए थे।

जैन धर्म से रखते है ताल्लुक-

फिल्म जगत के पितामह के नाम से पहचाने जाने वाले वी शांताराम का पूरा नाम राजाराम वांकुडरे शांताराम  है। उनका जन्म 1901 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर के जैन परिवार में हुआ था। शांताराम की बचपन से ही एक्टिंग में रुचि थी। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में रेलवे वर्कशाप में अप्रेंटिस के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। जिसके कुछ समय बाद वह एक नाटक मंडली में शामिल हो गए थे।v image new

बहुमुखी प्रतिभा से थे संपन्न-

फिल्म जगत के पितामह ने अपने जीवन के लगभग 50 साल फिल्म जगत को दिए हैं। वह निर्देशक(Director) होने के साथ एक्टिंग, एडिटिंग और फिल्म प्रोडूसिंग जैसी कलाओं में भी निपुण थे। वी. शांताराम ने एक अभिनेता के रूप में तकरीबन 25 फिल्मों में काम किया हैं जिसमे ‘सवकारी पाश’, ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘परछाईं’, ‘स्त्री’ और ‘सिंहगड’ जैसी फिल्में शामिल हैं

एक प्रोडूसर के तौर पर उन्होंने 90 से ज्यादा फिल्में प्रोड्यूस की हैं और लगभग 55 फिल्मों में निर्देशक के तौर पर काम किया हैं। इनमें ‘नेताजी पालकर’, ‘चंद्रसेना’, ‘अमर ज्योति’ ‘अमर भूपाली’, ‘नवरंग’ और ‘झनक झनक पायल बाजे’ जैसी सार्थक फिल्मों का नाम शामिल हैं जो समाज को एक नई दिशा की ओर सोचने के लिए मजबूर करती हैं।

गूगल ने दी प्रमुख तीन फिल्मों से श्रद्धांजली-

गूगल ने अपने डूडल के माध्यम से शांताराम की 1950 के दशक में आई सुप्रसिद्ध तीन फिल्मों की तस्वीरो को उजागर किया हैं पहली तस्वीर में 1951 में बनी ‘अमर भोपाली’ का गडरिया बना हुआ हैदूसरी में 1955 में बनी ‘झनक झनक पायल बाजे’ फिल्म का दृश्य दिखाया गया हैंअंतिम चित्र के माध्यम से 1957 में बनी ‘दो आंखें बारह हाथ’ की यादो को उजागर करने का प्रयास किया गया हैं

शांताराम को नक़ल करना बिलकुल पसंद नहीं था। वह कभी दूसरे निर्देशक की नक़ल नहीं किया करते थे। वह हमेशा कुछ नया करने की चाह में नए नए प्रयोग किया करते थे, जो बहुत सफल भी होते थे।

वह 1933 में अपनी पहली रंगीन हिंदी फिल्म के माध्यम से चर्चाओं में आये थेहिंदी फिल्मों में मूवींग शॉट्स और ट्रोली का सबसे पहले सफल इस्तेमाल उनके द्वारा ही किया गया एनिमेशन की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।

उपलब्धियां-

वी. शांताराम का नाम फिल्म जगत में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। वर्ष 1957 में उन्हें “झनक-झनक पायल बाजे” के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया था। उनकी फ़िल्म “दो आंखे बारह हाथ” के लिए भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार दिया गया था। पितामह शांताराम को वर्ष 1985 में भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

फिल्म जगत में नए नए आविष्कार करने वाले और फिल्मों को आधुनिक तकनीक देने वाले पितामह शांताराम ने “30 अक्टूबर 1990” को मुंबई में अंतिम सांस ली। भले ही आज वो हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके अमूल्य योगदान को फ़िल्मी जगत कभी नहीं भूल सकता।

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