
National Education Policy 2020 को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद लगातार देश के शिक्षण संस्थानों द्वारा इसको बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस तरह के एक कार्यक्रम का आयोजन 20 और 21 जुलाई को दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में एसजीटी (SGT) यूनिवर्सिटी द्वारा देश की नेशनल शिक्षा नीति से जोड़ने के लिए और उसकी अहमियत को दर्शाने के लिए किया गया।
National Education Policy 2020: कई अतिथि हुए शामिल
कार्यक्रम के पहले दिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर दिनेश सिंह, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव, पद्मश्री सम्मानित- प्रोफेसर जवाहर लाल कौल समेत कई बड़े अतिथि मौजूद रहे। उन्होंने गांधी की शिक्षा की अवधारणा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति कैसे भारत देश को आगे बढ़ाने में सहायता करेगी इसके महत्व को समझाया। उन्होंने कहा की नई शिक्षा नीति हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। शिक्षा पाने का मकसद केवल नौकरी पाना नहीं है बल्कि उसे जिंदगी में प्रैक्टिकल बनाना है।
“शिक्षा का अर्थ बच्चों को उलझाना नहीं बल्कि उसको सरल बनाना”
प्रो. दिनेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा नीति राष्ट्र के हित में होनी चाहिए। शिक्षा का अर्थ बच्चों को उलझाना नहीं बल्कि उसको सरल बनाना है। सभी जानते हैं कि आज के समय में शिक्षा का अर्थ है बच्चों से ऐसे सवाल पूछे जाएं कि वह जवाब ही न दे पाएं। उनका मकसद बस बच्चे को कैसे फेल किया जाए इस पर होता है। शिक्षक बच्चों के विचारों पर ध्यान नहीं देते।
“बच्चें बस बुक और रट्टा मार पढ़ाई पर टिक गए हैं”
शिक्षक चाहते हैं कि जो मैंने पढ़ाया बच्चा वैसा ही जवाब दे। जिससे इसका सीधा असर यह देखने को मिलता गया कि हमारे देश में ऐसी यूनिवर्सिटी ही नहीं है जो किसी बाहर की यूनिवर्सिटी को टक्कर दे पाए क्योंकि बच्चें बस बुक और रट्टा मार पढ़ाई पर टिक गए हैं। महात्मा गांधी ने हमेशा कहा कि अकेले नहीं ग्रुप में काम करके देखिए आपको अच्छा रिजल्ट मिलेगा। लेकिन आज की शिक्षा नीति बस यही बता रही थी कि कैसे कोई बच्चा नौकरी पा सकता है। शिक्षा का अर्थ बस नौकरी पाना बन गया है। केवल नौकरी के लिए पढ़ाई करना ही शिक्षा नहीं है, शिक्षा वह होती है जिसे आप प्रैक्टिकल रूप देते हैं।

“अहंकार का शिक्षा में कोई महत्व नहीं है”
आपने देखा होगा कि आज के समय में अध्यापक झुकना नहीं चाहते। अगर उन्हें किसी सवाल का जवाब नहीं आता है तो उसे खोजने की जरूरत नहीं समझते। नई शिक्षा नीति सभी को यही सिखाती है कि अहंकार का शिक्षा में कोई महत्व नहीं है। एक अध्यापक ऐसा होना चाहिए कि अगर वह जवाब नहीं जानता तो वह स्टूडेंट्स को कहे कि चलो मिलकर इसका जवाब ढूंढ़ते हैं।
“बच्चों की काबीलियत पर ध्यान देना होगा”
National Education Policy 2020 पर बोलते हुए, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारत को समर्पित शिक्षकों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एनईपी का क्रियान्वयन माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक और प्राथमिक स्तर के शिक्षकों पर निर्भर है। जोशी ने यह भी कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली पैकेज पर आधारित होती है। लेकिन इस नई शिक्षा प्रणाली में हमे बच्चों की काबीलियत पर ध्यान देना होगा।
“बच्चों से पढ़ाई के बोझ को संतुलित किया जाए”
कार्यक्रम में शामिल हुए प्रोफेसर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में सबसे ज्यादा शिक्षकों के प्रशिक्षण को बदलने पर जोर दिया जाएगा। इसमें स्कूलों के अध्यापक से लेकर उच्च शिक्षा तक अच्छे अध्यापक हो, इसके लिए ट्रेनिंग प्रोग्रामों में बदलाव की सिफारिश की मांग की गई है। इसमें बच्चों पर जो पाठ्यक्रम का भार बढ़ गया है, इस पर भी जोर दिया गया है कि बच्चों से पढ़ाई के बोझ को कैसे संतुलित किया जाए क्योंकि बच्चे मानसिक रूप से परेशान हो रहे हैं और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
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