नवरात्रि में नौं दिन मां दुर्गा के नौं रूपों की आरती अवश्य करनी चाहिए। कहा जाता है कि बिना आरती के पूजा अधूरी रहती है। पूजा को पूर्ण करने के लिए और मनोवांछित फल पाने के लिए मां की आरती करनी चाहिए। आरती का विशेष महत्व है।

आरती का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व भी है। मान्यता है कि कपूर,घी या तेल की आरती करने से हवा में मौजूद प्रदूषण जमीन पर आजाता है और धार्मिक तरह से माने तो सभी दिशाओं में सकरात्मक शक्तियों का प्रवेश होता है।

साथ ही आरती के समय बजने वाला ढोल, शंख और घंटी से मन में चल रहा उथल-पुथल शांत होता है और ऐसा महसूस होता है कि मां की कृपा बरस रही है। इससे शरीर को उर्जा मिलती है।

उत्तर स्कंद पुराण मे कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता पर वो मां की आरती कर ले तो देवी देवता उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

आरती करते समय इन बातों का रखे ख्याल

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आरती से पहले मां दुर्गा के मंत्रों से तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिए। इसके बाद शंख, घड़ियाल, ढोल और नगाड़े आदि महावाद्यों से जय-जयकार करना चाहिए। फिर घी या कपूर से विषम संख्या में (1,5,7,11,21,101) बत्तियाँ जलाकर आरती शुरू करें। विषम संख्याओ में तीन बत्तियों का प्रयोग न करें। 


ज्यादातर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे पंचप्रदीप भी कहा जाता है। कहीं-कहीं एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। कपूर से भी आरती होती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि ‘कुंकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दन की सात या पाँच बत्तियाँ बनाकर या दीपक की (रुई और घी की) बत्तियाँ बनाकर सात बत्तियों से शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए। आरती करते समय सबसे पहले देवि प्रतिमा के चरणों में चार बार घुमाएं, दो बार नाभि प्रदेश में, एक बार मुख मण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएं इस तरह चौदह बार आरती घुमानी चाहिए।

मां दुर्गा की आरती

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जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै,

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी,
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे,
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों,
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी,
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती,
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी। ॥ॐ जय अम्बे गौरी…॥

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