कहते हैं नवरात्र का नौ दिन शुभ होता है। यदि कोई काम करना है तो मुहूर्त की जरूरत नहीं पड़ती है, नौ दिन सबसे अच्छा मुहूर्त होता है। ये दिन देवी भक्तों के लिए खास रहता है। मां के मंदिर में नौ दिन भीड़ लगी रहती है। देवी की एक झलक पाने के लिए भक्त रात-भर लाइन में खड़े रहते हैं।

सभी को पता है कि नवरात्र के नौ दिन नौ देवियों के होते हैं। नौ देवियों की अलग-अलग तरह से पूजा की जाती है। इनके अलग-अलग नाम भी हैं। इन देवियों के मंत्र भी अलग हैं। यहां हम आप को आज नौ देवियों के मंत्र के बारे में बताएंगे।

1. शैलपुत्री

शैलपुत्री

नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। वेदों के अनुसार इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। इसलिए इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। इन्हें लोग  सती, पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती और भवानी के नाम से भी जानते हैं।

मंत्र- वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

2. ब्रह्मचारिणी

ब्रह्मचारिणी

कई कहानियों को पढ़ने के बाद पता चलता है कि मां ब्रहमचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से संबोधित किया जाता है।

मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

3. चंद्रघंटा

चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है।  इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं।

मंत्र- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

4. कुष्मांडा

4. कुष्मांड

नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से जाना जाता है। कहते हैं जब पृथ्वी नहीं थी, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरी था, तब इसी देवी ने अपने मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

मंत्र- सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

5. स्कंदमाता

5. स्कंदमाता

स्कंदमाता पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निमार्ण करने वाली देवी हैं। स्कंदमाता की पूजा पांचवे दिन होती है। कहते हैं इनके आशिर्वाद से मूर्ख भी ज्ञानी बन जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। 

मंत्र- सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

6. कात्यायनी

6. कात्यायनी

कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं।

मंत्र-चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

7. कालरात्रि

7. कालरात्रि

इस देवी की उपासना नवरात्र के सातवें दिन की जाती है। नाम से जाहिर होता है कि ये काल की रात्री हैं। यानि कि काल भी इन से भय खाता है। देवी का रूप विशाल है, सर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में चमकदार माला है। कहते हैं भूत-प्रेत से छुटकारा पाना है तो कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए।

मंत्र- एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

8. महागौरी

8. महागौरी

पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से इनके शरीर का रंग काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पावन जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।

मंत्र-श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

9. सिद्धिदात्री

9. सिद्धिदात्री

इनकी उपासना करने से सभी देवियों की उपासना हो जाती है। कहते हैं भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

मंत्र- सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

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