राम मंदिर पर आए फैसले के बाद से ही देश के अन्य विवादित धर्म स्थलों के विवाद सुलझाने की कवायद शुरु करने की बातें उठनी शुरु हो गई थीं। श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद भी एख अहम मसला है जिसे लेकर कुछ दिनों पहले कोर्ट में विवाद दायर किया गया था। इस मसले पर मथुरा कोर्ट आज फैसला करेगा कि इस याचिका पर आगे सुनवाई होगी या नहीं।

28 सितंबर को लिंक कोर्ट एडीजे-2 पॉस्को कोर्ट की जज छाया शर्मा ने याचिका पर सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की थी। अदालत में सुनवाई से पहले कृष्ण की नगरी में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

इन्होंने दायर की याचिका

25 सितंबर को भगवान श्रीकृष्ण विराजमान ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि कटरा केशवदेव पर हक के लिए सखी अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, प्रवेश कुमार, राजेश मनि त्रिपाठी, करुणेश कुमार शुक्ला, शिवाजी सिंह और त्रिपुरारी तिवारी के मदद से सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दाखिल की।

उन्होंने अधिवक्ता हरीशंकर जैन, विष्णु शंकर और पंकज शर्मा के माध्यम से अदालत से 13.73 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 1973 से पूर्व के समझौते और 1973 में हुई डिक्री रद्द करने की मांग की है।

पूरा मामला

अहम बात ये है कि मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के विवाद को लेकर 136 साल तक केस चला। जिसके बाद अगस्त 1968 में महज ढाई रूपये के स्टांप पेपर पर समझौता किया गया। तत्कालीन डीएम व एसपी के सुझाव पर श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने दस प्रमुख बिदुओं पर समझौता किया था। जिस समझौते को अवैध करार देते हुए कोर्ट में दाखिल दावे में मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।

याचिका में दावा किया गया है ​कि श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था और वह पूरा श्रेत्र ‘कटरा केशव देव’ के नाम से जाना जाता है। कृष्ण जन्म की वास्तविक जगह वहां है, जहां मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन कमेटी ने निर्माण किया हुआ है। दावे में यह भी कहा गया है कि, मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा में कृष्ण मंदिर को नष्ट करवाया था। जहां केशव देव मंदिर था, वहीं जो मस्जिद बनवाई गई, उसे ईदगाह के नाम से जाना जाता है।

ओवैसी ने क्या कहा

राम मंदिर के मुद्दे को शांत होकर अभी एक साल भी नही हुआ की देश में एक नए मुद्दे ने जन्म ले लिया है जिसका ताल्लुक श्री कृष्ण जन्मभूमि समझौते 1968 से है। मुद्दे को ताजा होते हुए देखकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट कर नाराजगी जाहिर की । ओवैसी ने लिखा, ” शाही ईदगाह ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ जब 1968 में इस विवाद को निपटा चुके, तो इसे फिर क्यों उठाया जा रहा है?” लेकिन उन्हें मालूम नहीं है या मामले को समझना नहीं चाहते है। विवाद में इस बात को साफ रेखांकित किया गया है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की शक्तियों पर भी सवाल उठाया गया है कि वह विवाद को निबटाने के लिए उचित अथॉरिटी नहीं थी।

Sri Krishna Janmmandir Masjid despute

जमीन का इतिहास

कहते हैं 1804 में मथुरा जब, अंग्रेजों के नियंत्रण में आया। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा की जमीन की नीलामी की, जिसे 1815 में बनारस के राजा पटनीमन ने खरीदा। राजा की इच्छा थी कि वे यहां मंदिर बनवाए, लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हुई। खाली पड़ी जमीन उनके वारिसों के पास रही

फिर इस जमीन को लेकर राजा के वारिस और कृष्ण दास के बीच विवाद खड़ा हुआ। 13.37 एकड़ की इस ज़मीन पर मथुरा के मुस्लिमों ने केस लड़ा लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1935 में राज कृष्ण दास के हक में फैसला दिया। 1944 में यह ज़मीन दास से पंडित मदनमोहन मालवीय ने 13000 रुपये में ली, जिसमें जुगलकिशोर बिड़ला ने आर्थिक मदद दी। मालवीय की मृत्यु के बाद बिड़ला ने यहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया, जिसे बाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना गया।

जयदयाल डालमिया के सहयोग से बिड़ला ने इस ज़मीन पर मंदिर कॉम्प्लेक्स का निर्माण 1953 में शुरू करवाया। फरवरी 1982 में यह निर्माण पूरा हो सका। तीसरी पीढ़ी के अनुराग डालमिया ट्रस्ट के जॉइंट ट्रस्टी हैं। इस मंदिर कॉम्प्लेक्स में एक और उद्योगपति रामनाथ गोयनका का भी वित्तीय सहयोग रहा।

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