भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पद्म भूषण एवं पद्मश्री पंडित विश्व मोहन भट्ट के जन्मदिन और गुरु पूर्णिमा के अवसर पर एपीएन न्यूज चैनल ने विश्व शांति के लिए एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर एपीएन न्यूज चैनल की एडिटर-इन-चीफ राजश्री राय और चेयरमैन प्रदीप राय मौजूद रहे। उनके जन्मदिन के मौके पर विख्यात मोहनवीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट को फूलों का गुलदस्ता देकर और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। वहीं केक काटकर पंडित विश्व मोहन भट्ट का जन्मदिन मनाया गया।
#Live:#APN ने मनाया विश्वप्रसिद्ध पंडित विश्वमोहन भट्ट का जन्मदिन। #APN चैनल की एडिटर इन चीफ @RajShriAPN ने अपने मीठे बोल से पंडित विश्वमोहन के बारे में बताया। उनके प्रसिद्धि की व्याख्या की। उनके व्यक्तित्व को दर्शाया। सुनिए अब विख्यात मोहनवीणा वादक को#GuruPurnima pic.twitter.com/CowKEiC30d
— APN न्यूज़ हिंदी (@apnlivehindi) July 27, 2018
आपको बता दें कि इस कार्यक्रम का आयोजन एपीएन के साथ-साथ रश्मिरथी फाउंडेशन और बालाजी फाउंडेशन के सहयोग से हुआ।
इस कार्यक्रम की शुरुआत मनीषा मीरा ने अपने सुरों से की। उनकी आवाज के सुरों ने पूरे कार्यक्रम को सुरमयी बना दिया। वहीं इस मौके पर मलिक ब्रदर्स के ध्रुपद की विशेष प्रस्तुति से पूरी महफिल सुरमय हो गई है। वहीं पंडित संतोष नाहर ने वायोलिन बजाकर अपनी परफॉर्मेंस से इस कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए और सभी लोगों का दिल जीत लिया। अंत में पंडित विश्वमोहन भट्ट ने अपने चिर-परिचत अंदाज में सुरों का जो बाण चलाया उससे पूरी महफिल घायल हो गई। उनके सुरों में लोग इतना खो गए कि मानों समय ही थम गया।
#Live: #APN दे रहा विख्यात मोहनवीणा वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट को उनके जन्मदिन की विशेष बधाई। ये विशेष केक खास उनके लिए बनाया गया है। नीले रंग का ये केक उनके जिंदगी को भी रंगारंग कर दे यही हमारी कामना है@RajShriAPN @pradeepraiindia pic.twitter.com/iZZFJDE0g3
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पंडित विश्व मोहन भट्ट का जन्म 27 जुलाई को 1950 राजस्थान के जयपुर में हुआ था। संगीत के प्रति उनका बचपन से ही रुझान था। मैहर घराने की संगीत परम्परा से जुड़े भट्ट जी सुप्रतिष्ठित सितार वादक स्वर्गीय पण्डित रविशंकर के शिष्य रहे हैं। भट्ट जी के बड़े भाई पण्डित शशिमोहन भट्ट, पण्डित रविशंकर के पहले शागिर्द थे। संगीत उनकी पीढिय़ों और पूर्वजों में तीन सौ वर्षों से स्थापित और प्रवाहमान है। उनकी पीढिय़ाँ महान साधक संगीत सम्राट तानसेन एवं स्वामी हरिदास से जुड़ी रही हैं।
पण्डित विश्वमोहन भट्ट ने सबसे पहले सितार बजाना सीखा। सौभाग्यवश उनको पण्डित रविशंकर जी का सान्निध्य और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था। संगीत के व्याकरण और ध्वनि के सौन्दर्यबोध तथा आभासों को समझने में भट्ट जी ने गहरी लगन और जिज्ञासा का परिचय दिया। आगे चलकर वे मोहनवीणा जैसे अनूठे वाद्य के परिकल्पनाकार और सर्जक बने। उन्होंने इस वाद्य में गिटार और सितार के गुणों का समावेश करते हुए वीणा और सरोद की विशिष्टताओं को भी समाहित करने का गहरा सर्जनात्मक उपक्रम किया।
विख्यात मोहनवीणा वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट को मार्च 1994 में ग्रेमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। साल 2002 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2012 में राजस्थान रत्न से नवाजा गया।
पण्डित विश्वमोहन भट्ट की एक कलाकार के रूप में सबसे बड़ी विशेषता उनका अत्यन्त सहज होना है। वे राजस्थान की जमीन से हैं और एक कलाकार के रूप में सृजनात्मकता की जो नमी उनमें दिखायी देती है वह अनूठी है। वे प्रतिष्ठित और स्थापित कलाकार के सारे गौरव से परे अपने आपको विनम्र, विनयशील और सहज रूप में हमारे सामने होते हैं। यहाँ तक कि उनके साथ भरपूर जिज्ञासु होकर बात करना भी बड़ा सुखद और अनुभवों से भरा लगता है।