एक बार फिर आज एक ऐसा सवाल सामने है जिसका जवाब देश को अब ढ़ूंढ़ना ही होगा। एक बार फिर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसी ट्विटरबाजी का दौर चला है जिसे देश के लिए कहीं से भी जायज करार नहीं दिया जा सकता। देश के खिलाफ बोलने के फैशन में ऐसे-ऐसे लोग जुटे हैं जो कथित तौर पर बुद्धिजीवी का चोंगा ओढ़ कर दुश्मन देश की भाषा में बात करते हैं। ये एक बार भी नहीं सोचते कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान देश को हो रहा है। उस सेना के मनोबल को हो रहा है जो अपना सबकुछ छोड़कर देश की सुरक्षा में मुस्तैद हैं। आखिर इन तथाकथित बुद्धिजीवियों  का जो अपने आप को अंतरराष्ट्रीय नागरिक मानते हैं । सरकार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कब तक इनको देश के खिलाफ जहर उगलने की छूट दे सकती है। इसका इलाज क्या है?

बुधवार 24 मई को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में अभिव्यक्ति की आजादी के मसले पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन), सुरेन्द्र राजपूत (प्रवक्ता कांग्रेस), कमाल हक (कश्मीर मामलों के जानकार), विनय राय ( मैनेजिंग एडिटर एपीएन) आर पी सिंह (राष्ट्रीय प्रवक्ता बीजेपी) शामिल थे।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि ये बहुत बड़ा मुद्दा है और इस मुद्दे पर सिर्फ बीजेपी को क्या करना चाहिए इस आधार पर हम इस मुद्दे पर बात नही कर सकते हैं। एक तरफ मानवाधिकारों की बात होती है और हम मानते हैं कि भारत मानवाधिकारों के मामलें में दुनिया के बेहतर देशों में शामिल है। दुनिया के ज्यादातर देशों से ज्यादा हम लोगों को बोलने की आजादी का अधिकार है। जिस तरह के लोगों ने इस तरह के बयान दिये है ज्यादातर लोगों के बारे में हम देखें तो मूलत:  ये भारत के नागरिक ही नही हैं। भारत के प्रति जैसी निष्ठा आम लोगों की होती है वैसी निष्ठा इन लोगों की नही है। ये लोग खुद को अंतरराष्ट्रीय नागरिक के तौर पर देखते हैं।

कमाल हक ने कहा कि आजकल जो माहौल है यह अनूकूल माहौल नही है तो फिर अनूकूल माहौल की परिभाषा क्या है? कश्मीर में लोग सरेआम पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाते हैं। क्रिकेट टूर्नामेंट में पाकिस्तान के कलर की शर्ट पहने जाते हैं। वहां पर आइएसआइएस के झंडे लहराये जाते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी में आप राजनीति लायेंगे तो ये मसला ऐसे ही चलता रहेगा।

सुरेन्द्र राजपूत ने कहा जिस आदमी को यहां के संविधान में आस्था नही है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आपको नागरिक मानता है तो वो यहां से चला जाये यही बेहतर है और देश की सरकार को देशद्रोह के धाराओं में कार्रवाई करनी चाहिए और ये बात कह कर नही बचा जा सकता कि जेएनयू में ऐसा हो गया। वर्तमान सरकार को ये जरुर बताना चाहिए कि पिछले तीन साल में कितने लोगों के खिलाफ देशद्रोह की धाराओं में कार्रवाई  की गई।

विनय राय ने कहा कि खाते कहाँ की है और बजाते कहाँ की है ये मुद्दा नही है। उनको सिर्फ चाहिए चर्चा किस बयान से उनको चर्चा मिलती है। समाज में ऐसे लोगों की पूछ नही है कुछ भी अनर्गल बयानबाजी करते हैं उस पर चर्चा होती है। इसलिए कभी-कभी हिंसा के भी शिकार हो जाते हैं। मानवाधिकार सबका है। सैनिक वहां पर गोली खाने या अलगाववादी ताकतों के जूते खाने नही गये हैं वो गये हैं देश की रक्षा के लिए उनको भी आपको खुली छुट देकर निर्देश देना पड़ेगा कि अगर कोई ऐसी शक्तियां सामने आती हैं तो उनके खिलाफ सख्ती से निपटिए।

आरपी सिंह ने कहा कि ये भारत देश ही ऐसा देश है जहां पर इनको छूट मिलती है। इस प्रकार के लोग देश हित में नही है। पिछले 3 साल में हमने जितनी छूट फौज को दे रखी है वो छूट पहले कभी नही मिली। चाहे सर्जिकल स्ट्राइक का मामला हो या मेजर गोगोई का मामला हो सेना को पूरी छूट है। देश के कानून के अंतर्गत जितनी कार्रवाई हो सकती है उतनी कार्रवाई हो रही है।

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