इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि किशोर न्याय कानून के तहत जमानत अर्जी की सुनवाई से पहले शिकायत कर्ता को सुनवाई का मौका दिया जाना जरूरी है। और हाईकोर्ट में दाखिल पुनरीक्षण अर्जी पर जमानत पर रिहा करने की सुनवाई बिना शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किए नहीं की जा सकती है।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता विपक्षी को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में मांगा है जवाब
यह आदेश न्यायमूर्ति डा वाई के श्रीवास्तव ने हत्या के आरोपी नाबालिग योगेश की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय कानून के तहत गिरफ्तारी के बाद किशोर आरोपी को जेल नहीं भेजा जायेगा। उसे बाल कल्याण पुलिस को सौंपा जाएगा। और 24घंटे में बोर्ड के सामने पेश किया जाएगा।जहां से उसे प्रोवेशन अधिकारी के संरक्षण में सुरक्षा के साथ आश्रय स्थल में रखा जायेगा।
कोर्ट ने कहा कि किशोर अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार किया जा सकता है। लेकिन ऐसा करते समय देखा जायेगा कि छूटने के बाद वह कहीं अपराधियों से मिल तो नहीं जायेगा। उसे नैतिक, शारीरिक व मानसिक खतरा तो नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि किशोर को गैर जमानती अपराध में जमानत पाने का अधिकार नहीं है। यह न्यायाधीश के ऊपर निर्भर करता है।
पीट-पीट कर मार डालने का आरोप
बता दें कि मथुरा के वृंदावन थानाक्षेत्र में पीट पीट कर मार डालने के आरोप में 22सितंबर 20को एफ आई आर दर्ज कराई गई। आरोपी मृतक को तब तक पीटते रहे जब तक मौत नहीं हो गयी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि सिर में गंभीर चोटें के कारण मौत हुई। पुलिस ने याची सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। किशोर न्याय बोर्ड ने याची की आयु 16वर्ष 6माह 16दिन बताया। जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बोर्ड को रिपोर्ट दी कि याची पर परिवार का नियंत्रण नहीं है।उसके अपराधियों के साथ जाने की संभावना है।
इसपर कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी। हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। सवाल उठा कि क्या बिना पीड़ित पक्ष को नोटिस जारी किए जमानत अर्जी की सुनवाई की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि जमानत अर्जी पर पीड़ित पक्ष को सुना जाना जरूरी है। बिना पीड़ित पक्ष को नोटिस दिए बगैर जमानत अर्जी पर सुनवाई नही हो सकती।
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