Sedition Law: भारतीय विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। विधि आयोग की ओर से कानून मंत्री को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह कानून जरूरी है। आयोग ने कुछ संशोधन के साथ कानून को बनाए रखने की सिफारिश की है। आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि कुछ संशोधन के साथ इस कानून को बनाए रखा जा सकता है। आयोग ने ये भी कहा कि इस कानून को समाप्त करने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा, विधि आयोग ने यह भी प्रस्ताव दिया कि राजद्रोह के अपराध के लिए सजा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जाए।

Sedition Law: विधि आयोग ने क्या कहा?
विधि आयोग ने राजद्रोह कानून पर अपनी सिफारिश पेश की है। विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त करने के बजाय इसमें कुछ संशोधनों के साथ प्रावधान को बनाए रखने का प्रस्ताव दिया है।
आयोग ने कहा है कि राजद्रोह से निपटने वाली आईपीसी की धारा 124ए को इसके दुरुपयोग से रोकने के लिए कुछ सुरक्षा उपायों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इसमें कुछ संशोधन की जरूरत है ताकि प्रावधान के उपयोग के संबंध में अधिक स्पष्टता लाई जा सके।
क्या कहता है आयोग का प्रस्ताव?
आयोग द्वारा यह सिफारिश की गई है कि केंद्र द्वारा दुरुपयोगों पर लगाम लगाते हुए आदर्श दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है। ऐसी कानूनी व्यवस्था की जाए कि आईपीसी की धारा 124ए जैसे प्रावधान की अनुपस्थिति में, सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने वाली किसी भी अभिव्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ‘आईपीसी की धारा 124ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है ये ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने की तरह होगा।’
आयोग ने यह भी कहा कि ‘‘औपनिवेशिक विरासत’’ होने के आधार पर राजद्रोह को निरस्त करना उचित नहीं है। इसे निरस्त करने से देश की अखंड़ता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है। संशोधन के लिए सुझाव दिए गए। इसमें केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के अनुपात निर्णय को शामिल करके पेश किया जा सकता है, जिससे प्रावधान के उपयोग के बारे में अधिक स्पष्टता लाई जा सकती है।
इसके अलावा, विधि आयोग ने यह भी प्रस्ताव दिया कि राजद्रोह के अपराध के लिए सजा बढ़ाई जाए। इसने सुझाव दिया कि राजद्रोह को आजीवन कारावास या 7 साल तक की अवधि के लिए या इस आधार पर जुर्माने के साथ दंडनीय बनाया जाना चाहिए। सजा की योजना को आईपीसी के अध्याय 6 के तहत अन्य अपराधों के साथ समानता में लाया जाना चाहिए। वर्तमान में अपराध 3 साल तक के कारावास या जुर्माने से दंडनीय है।
केंद्र सरकार लाए मॉडल दिशानिर्देश -विधि आयोग
आयोग ने धारा के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह सुझाव दिया कि केंद्र सरकार मॉडल दिशानिर्देश लेकर आए। आयोग ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में एक प्रावधान जोड़ने के लिए संशोधन का प्रस्ताव किया है, जिसमें यह निर्धारित किया गया कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा अनुमति के बाद ही, जैसा भी मामला हो, प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर राजद्रोह के अपराध के लिए एफआईआर पुलिस अधिकारी द्वारा प्रारंभिक जांच के बाद ही दर्ज की जानी चाहिए, जो इंस्पेक्टर के पद से कम नहीं है।
आयोग इस दृष्टिकोण से भी असहमत है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और कहा कि यह उचित प्रतिबंध है।
आयोग ने कहा कि अगर इस तर्क को अपनाया जाता है तो उसकी औपनिवेशिक विरासत के लिए पूरी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को निरस्त कर देना चाहिए। आयोग ने कहा कि वह प्रावधान के संभावित दुरुपयोग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए यह सिफारिश कर रहा है।
अगस्त के दूसरे हफ्ते में SC में सुनवाई संभव

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ असंतोष को दबाने के लिए प्रावधान के दुरुपयोग के संबंध में व्यक्त की गई चिंताओं पर ध्यान देते हुए प्रावधान को स्थगित रखने का आदेश दिया था। एक मई को केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि संसद के मानसून सत्र में बिल लाया जा सकता है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगस्त के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या राजद्रोह पर 1962 के पांच जजों के फैसले की समीक्षा के लिए सात जजों के संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि इस मामले में उसका क्या रुख है?
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