Panchayati Raj Diwas 2023: सतत विकास के दौर में कहां पहुंच पाया है ग्रामीण विकास?

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Panchayati Raj Diwas 2023
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Panchayati Raj Diwas 2023: इस वर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज व्यवस्था की 30वीं वर्षगांठ है या कहें विकेंद्रीकृत स्थानीय सरकारों के तीन दशक पूरे हो गए, जब 73वें और 74वें संशोधनों ने ग्रामीण पंचायतों और शहरी नगरपालिका परिषदों को संवैधानिक दर्जा दिया था। भारत के संविधान द्वारा परिकल्पित पंचायती राज व्यवस्था के दो मुख्य उद्देश्य थे पहला स्थानीय आर्थिक विकास और दूसरा सामाजिक न्याय व्यवस्था को सुनिश्चित करना। पारंपरिक ज्ञान यह है कि पंचायती राज एक महान विचार है, लेकिन हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि देश के विकास में ग्रामीण विकास की क्या भूमिका है और ग्रामीण विकास का कितना विकास हुआ है और साथ हीं उनके सामने क्या क्या चुनौतियां हैं।

ग्रामीण विकास मंत्रालय हमेशा से भारत में एक महत्वपूर्ण विभाग रहा है जहां हर वित्त वर्ष में देश के कुल बजट का बड़ा हिस्सा आवंटित किया जाता है। वर्तमान में केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं और परियोजनाओं के लिए पिछले वर्ष की तुलना 126 करोड़ रुपये से घटाकर 113 करोड़ रुपये कर दिया गया है, यानी तकरीबन 14 फीसदी की कमी। कई बार ऐसा देखा जाता है कि केंद्र सरकार द्वारा आवंटित बजट का पूर्ण रूप से उपयोग न होना और वित्त वर्ष के अंत में आवंटित बजट का वापस हो जाना, यह सिद्ध करता है ग्रामीण विकास में बजट समस्या नहीं अपितु बजट का सही और समयानुसार इस्तेमाल करना एक चुनौती है।
इसका एक मुख्य कारण है राज्य सरकारों द्वारा बजट सही समय पर पंचायतों को मुहैया न कराना, ग्रामीण प्रतिनिधियों में जागरूकता और बजट को लेकर सही जानकारी का अभाव होना है। इस बात में कोई शक नहीं है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे छोटे रूप में ग्राम पंचायत ने राज्य और देश में कई स्थानीय राजनेताओं का निर्माण किया है लेकिन सवाल यह भी है कि उन्होंने पंचायती राज के पिछले 30 वर्षो के सफर में, इस व्यवस्था के सुधार में कितना योगदान दिया और क्या वो पर्याप्त है?

Panchayati Raj Diwas 2023: विवके सिंह-फाउंडर, एकेडेमिया फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट , नई दिल्ली
Panchayati Raj Diwas 2023: विवके सिंह-फाउंडर, एकेडेमिया फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट , नई दिल्ली

Panchayati Raj Diwas 2023: क्या हैं ग्रामीण विकास की चुनौतियां?

ग्राम पंचायतों के समक्ष कई चुनौतियां है जो देश के विकास के रफ्तार को पूर्णतया तो नहीं लेकिन आंशिक रूप से बाधित करती हैं। अगर बात उन चुनौतियों की करें तो सबसे पहला है कृषि और पलायन। अवसर की कमी के कारण युवाओं का गांव छोड़कर चले जाना और फिर सिर्फ त्योहारों के बहाने गांव घुमने आना। यह चिंतनीय है कि अगर किसी क्षेत्र से युवा वर्ग ही पलायन कर जाये तो वहां के मुलभूत विकास की बात कौन करेगा? गांव की अपनी एक सांस्कृतिक छवि है , कुछ परम्पराएं और भाषाए हैं और ये सब कुछ सिर्फ पलायन के कारण एक दिन विलुप्त हो जाएंगे।

वहीं, आज के दौर में कृषि घाटे का व्यापार बन कर रह गया है जिसपर कभी ग्रामीण विकास और उस क्षेत्र की समृधि की बुनियाद रखी जाती थी। कोई किसान नहीं चाहता कि उसका बेटा आगे चल कर खेती करे जो की भविष्य के लिए एक आपदा के समान है। दूसरी चुनौती है ग्रामीण प्रतिनिधियों में साक्षरता के स्तर में कमी जिसके परिणामस्वरूप बहुत कम ग्राम पंचायत के प्रधान या सरपंच अपने ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर दूरदर्शी सोच या दृष्टिकोण रखते हैं।

तीसरी बड़ी चुनौती है महिला प्रतिनिधियों के कार्य उनके पति या परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाना।असल में पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण देने का मकसद महिला सशक्तिकरण और उनको समान अवसर प्रदान करना था लेकिन वास्तविकता इससे परे है। 2018 में पि. वेणुगोपाल की अध्यक्षता में पंचायतों के कामकाज में सुधार के सन्दर्भ में एक स्थाई समिति का गठन किया गया था। आयोग की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि पंचायतों की अनिवार्य बैठकें (ग्राम सभा )नहीं होती है और जहां होती हैं वहां ग्रामीणों और प्रतिनिधियों की उपस्थिति कम थी, विशेषकर महिला प्रतिनिधियों की।

बेशक ग्रामीण प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण (कैपेसिटी बिल्डिंग) पर जोर देने और उन्हें जिम्मेवार बनाने के लिए नियमित ट्रेनिंग की आवश्कता है। चौथी चुनौती है ग्राम पंचायतों के पास राजस्व का अपना स्रोत न होना। भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन इकॉनमी वाले देशों की सूचि में आ जाएगा लेकिन भारत के अधिकांश ग्राम पंचायतों के पास राजस्व का अपना स्रोत नहीं है जिसकी वजह से आज भी ग्राम पंचायत अपने किसी भी विकास कार्य के लिए राज्य या फिर केंद्रीय वित्त आयोग के सहायता राशि पर निर्भर है। इस सन्दर्भ में पंचायती राज मंत्रालय ने वर्ष 2021 में ‘ग्राम सभा को जीवंत बनाने’के विषय पर जारी अपनी सलाह में सभी ग्राम पंचायतों को यह निर्देश दिया है कि पंचायतें अपनी ग्राम सभा में ग्रामीणों और प्रतिनिधियों के बीच पंचायत के राजस्व स्रोत पर चर्चा करें और सलाह मंत्रालय को भेजें। यह एक बेहतरीन कदम है जहां मंत्रालय एक पंचायत की सलाह को गंभीरता से लेगा वहीं, पंचायती राज व्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।

सतत विकास लक्ष्य 2030 और ग्राम पंचायत
सतत विकास लक्ष्य प्राप्ति के लिए ग्राम पंचायतों को और सशक्त करने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों में उल्लेखित 17 लक्ष्यों में कुछ छोड़ दे तो तकरीबन सभी लक्ष्य को पाने के लिए ग्रामीणों को समान अवसर और व्यवस्था देनी होगी। यह सच है कि चुनौतियां हमेशा अवसरों को जन्म देती हैं। आज ग्रामीण विकास के चुनौतियों को अगर सकारात्मक तरीके से लिया जाए तो भविष्य में भारत के विकासशील से विकसित होने का सफर ग्रामीण विकास के माध्यम से हीं पूर्ण होगा।

वर्तमान केंद्रीय सरकार ने कई ऐसे दूरदर्शी सामाजिक तथा आर्थिक योजनाओं की शुरुआत की है जो न सिर्फ पंचायती व्यवस्था को सुदृढ़ करेगा अपितु ग्रामीणों के जीवन में जल्द ही बदलाव देखने को मिलेगा लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि विकास हमेशा संसाधनों के माध्यम से होती है और ऐसे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित हैं। उदहारण के तौर पर वर्तमान सरकार ने ग्रामीणों को बेहतर और शुद्ध पीने योग्य जल के लिए हर घर जल नल योजना की शुरुआत की, लेकिन क्या आज उस जल का इस्तेमाल ग्रामीणों द्वारा सिर्फ पीने के लिए हो रहा है या उस शुद्ध जल को बर्बाद भी किया जा रहा है ? यह समय सिर्फ सरकार से सवाल करने का नहीं बल्कि एक जिम्मेवार ग्रामीण बनने का भी है जहां हम सबको ग्रामीण विकास के लिए आगे आना होगा जो सतत विकास के पथ पर हो न की क्षणिक विकास और हमें इस सफर में गांव के मूल परिचय को बचाए रखने के लिए भी संघर्ष करना होगा।

-विवेक सिंह
फाउंडर, एकेडेमिया फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट , नई दिल्ली

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